Ghaziabad: सिद्धार्थ विहार योजना में 350 करोड़ का घोटाला, SIT जांच में 5 अफसर दोषी, विजिलेंस जांच की सिफारिश

Siddharth Vihar Yojana Awas Vikas Parishad: यूपी के गाजियाबाद की सिद्धार्थ विहार योजना (Siddharth Vihar Yojana) में 350 करोड़ के घोटाले का मामला सामने आया है। मेरठ के कमिश्नर की निगरानी में हुई जांच में अधिकारियों और बिल्डर की मिलीभगत से करोड़ों का नुकसान का खुलासा हुआ है। ये मामला एसआईटी को सौंपा गया।

लखनऊ आवास विकास (Lucknow Housing Development) के अफसरों और इंजीनियरों के द्वारा गाजियाबाद के बिल्डर गौर संस इंडिया कंपनी को भू उपयोग शुल्क जमा कराए बिना ही वर्ष 2014 में सिद्धार्थ विहार योजना के सेक्टर 8 में 12.47 एकड़ जमीन देने का घोटाला समाने आया है। तो वहीं इस जमीन की कीमत अनुमानित 350 करोड़ रुपये आंकी जा रही है।

आवास विकास परिषद के अधिकारियों ने गाजियाबाद की सिद्धार्थ विहार योजना के सेक्टर-8 में एक बड़े विल्डर को 12 एकड़ जमीन बिना पैसे लिए ही आवंटित कर दी थी। जमीन मिलने के बाद बिल्डर ने इस पर फ्लैट बनाकर बेच दिए। जमीन पर लगभग 300 फ्लैट बनाकर बिल्डर ने बेचे।

इस जमीनी घोटाले की जांच एसआईटी ने की थी। स्पेशल टॉस्क फोर्स के द्वारा आवास विकास को जांच रिपोर्ट सौंपे जाते ही आवास आयुक्त रणवीर प्रसाद ने शासन के अपर मुख्य सचिव (आवास) नितिन रमेश गोकर्ण को प्रकरण की विजिलेंस जांच कराए जाने के लिए पत्र लिखा है।

जांच में कई अफसर पाए गए दोषी

एसआईटी की जांच में तत्कालीन उप आवास आयुक्त एसवी सिंह, सहायक अभियंता आरएल गुप्ता, अनुभाग अधिकारी साधु शरण तिवारी, वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बैजनाथ प्रसाद और सहायक श्रेणी द्वितीय आरसी कश्यप को प्रथम दृष्ट्या दोषी पाया गया है। जांच पूरी होने से पहले यह सभी दोषी रिटायर हो चुके हैं। इनके खिलाफ विजिलेंस जांच की सिफारिश की गई है।

बताया जाता है कि आवास विकास परिषद की तरफ से मोहन मिकिंस और नेशनल सीरियल प्रोडक्ट्स लिमिटेड को 12.47 एकड़ जमीन दी गई थी। इसका उद्धेश्य जल शुद्धिकरण का था। फर्मों ने नियमों की अनदेखी की और एक्सचेंज डीड में बदलाव कर दिया। इसके बाद में यह जमीन गौर संस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को बेच दी थी।

1989 में इस जमीन का कब्जा लिया गया था

आवास विकास ने STP बनाने के लिए किसानों को मुआवजा देकर साल 1989 में इस जमीन का कब्जा लिया था। इसके बाद साल 2004 में इस जमीन को लेकर विवाद शुरू हुआ। तो जून 2014 में बिल्डर की दूसरी जमीन के एवज में एसटीपी के प्रस्तावित जमीन उसे दे दी गई। बिल्डर को इस पर आवासीय प्रोजेक्ट लाने से पहले उसका भू उपयोग बदला जाना था। इसके लिए शुल्क लिया जाना था। मगर अफसरों और इंजीनियरों ने भू उपयोग शुल्क जमा बिना कराए ही जमीन दे दी। इससे आवास विकास को को 350 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ।

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