लोकसभा चुनाव 2024 : पिछड़ों और दलितों को अपने पाले में करने की मुहिम तेज

अपने कमजोर पक्ष को मजबूत बनाने में जुटी भाजपा

Sandesh Wahak Digital Desk : 2024 के आम चुनावों की तारीख जैसे-जैसे नजदीक आती जा रही है, पार्टियों के सियासी समीकरणों में भी तेजी से बदलाव हो रहे हैं। हाल ही में ओबीसी नेताओं में बड़ा चेहरा रखने वाले ओम प्रकाश राजभर एनडीए का हिस्सा बन गए। सोमवार को दारा सिंह चौहान की भी घर वापसी हो गयी।

राजभर का आना लोकसभा चुनावों से पहले भाजपा के चुनावी अभियान को और मजबूत करने की दिशा में काम करेगा। सत्तारूढ़ पार्टी के खेमे में राजभर का जाना, हिंदी पट्टी में पिछड़ी जातियों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने की भाजपा की सशक्त कोशिश को दिखाती है। वह भी ऐसे माहौल में जब लोकसभा चुनाव से पहले विपक्ष ने ओबीसी जनगणना समेत कई मुद्दों को उठा रखा है।

प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बढ़ती प्राथमिकता

केंद्र सरकार ने अब तक अन्य पिछड़ा वर्ग की जनगणना की मांग पर चुप्पी साध रखी है। जो सबसे बड़ा मतदान समूह है। इस वर्ग की ओर से 2014 के बाद से मतदान केंद्रों पर प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में सत्तारूढ़ पार्टी के लिए बढ़ती प्राथमिकता दिखाई गई है। छोटे दलों का प्रतिनिधित्व करने वाले और ज्यादातर एक विशेष पिछड़ी या दलित जाति से जुड़े कई नेता हाल के महीनों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए में चले गए हैं।

उन्होंने विपक्ष का साथ छोड़ दिया है क्योंकि इस दौर में सत्ताधारी धल ने अपना वो पक्ष मजबूत करना शुरू कर दिया है, जहां वह कभी-कभी कमजोर दिखाई देती रही है। 2014 से भाजपा का गढ़ बने उत्तर प्रदेश में राजभर, संजय निषाद जैसे ओबीसी नेता एनडीए में शामिल हो चुके हैं। इन दोनों नेताओं का निषादों-केवटों और मछुआरों के बीच प्रभाव है।

भाजपा यूपी में एक बेहद प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बन कर उभरी

वहीं अपना दल (सोनेलाल) की केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल को पिछड़े, कुर्मियों का समर्थन प्राप्त है। जहां 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले निषाद पार्टी का भाजपा के साथ गठबंधन हुआ था। वहीं पटेल 2014 से ही भाजपा की सहयोगी रही हैं। पीएम मोदी के नेतृत्व में 2014 में पहली बार लोकसभा में बहुमत हासिल करने के बाद से भाजपा यूपी में एक बेहद प्रभावशाली राजनीतिक ताकत बन कर उभरी थी।

तो वहीं सपा ने 2022 की विस चुनाव में राजभर और अपना दल के राइवल समूह के साथ मिलकर पूर्वांचल क्षेत्र में इसे बड़ा नुकसान पहुंचाया था। दारा सिंह चौहान सहित भाजपा के कुछ ओबीसी नेता गैर-यादव पिछड़ों तक अपनी पहुंच बढ़ाने के लिए सपा में शामिल हो गए थे। अब चौहान के भाजपा में लौटने के फैसले ने उत्तर प्रदेश जैसे महत्वपूर्ण राज्य में विपक्ष को एक और झटका दिया है। भाजपा की ओर से रालोद के नेता जयंत सिंह को अपने पक्ष में लाने की कोशिश से साफ नजर आ रहा है कि पार्टी अपना उद्देश्य पूरा करने को लेकर गंभीर है।

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