संपादकीय : आत्मघाती असफलता

Sandesh Wahak Digital Desk : यूपी बोर्ड के परीक्षा परिणाम चंद दिनों पहले आए। तमाम छात्र अपने प्रयास में असफल भी रहे। परीक्षा में फेल होने के कारण करीब एक दर्जन छात्र-छात्राओं ने आत्मघाती कदम उठाया। उन्होंने अपनी जान दे दी। हाईस्कूल- इंटर ही नहीं अन्य परीक्षाओं में भी फेल होने पर कई छात्र खुदकुशी कर चुके हैं। छात्रों की इस प्रवृत्ति ने अभिभावकों और मनोवैज्ञानिकों को परेशान कर दिया है। सरकार भी इसे लेकर चिंतित है।

इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि :-

  • छात्र खुदकुशी जैसा कदम क्यों उठा रहे हैं?
  • क्या इसके पीछे अभिभावकों की अपेक्षाएं और महत्वाकांक्षाएं जिम्मेदार हैं?
  • नए सामाजिक-आर्थिक परिवेश में परीक्षा में सफल होना ही अंतिम मानक है?
  • क्या बच्चों और अभिभावकों के बीच संवादहीनता इसकी बड़ी वजह है?
  • असफलता को स्वीकार कर संघर्ष करने की प्रवृत्ति घट रही है?
  • क्या सफल सहपाठियों के सामने शर्मिंदगी के कारण असफल बच्चे निराशा की गर्त में गिरकर आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं?
  • समाज को परीक्षा और अंकपत्रों की गणित से आगे बढ़ने की जरूरत नहीं है?

पिछले एक दशक से परीक्षा में फेल होने पर खुदकुशी की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। यही नहीं कई बार अच्छे अंक नहीं आने के कारण भी बच्चे निराश होकर आत्महत्या जैसा कदम उठा रहे हैं। इसके पीछे कोई एक कारण जिम्मेदार नहीं है। आज का सामाजिक-आर्थिक ताना-बाना बेहद जटिल हो चुका है। इसमें परीक्षा में पास होना ही व्यक्ति की अंतिम उपलिब्ध मान ली गई है।

बच्चों पर अभिभावक की महत्वाकांक्षा का बोझ

बच्चों पर न केवल अपने अभिभावकों की महत्वाकांक्षाओं का बोझ होता है बल्कि वे परिवेश से भी प्रभावित होते हैं। वे साथियों से स्पर्धा में पीछे नहीं रहना चाहते हैं। एक छोटी सी असफलता भी उनको अपनी जिंदगी से बड़ी लगने लगती है। वे ये नहीं समझ पाते हैं कि परीक्षा परिणाम केवल अंकों का खेल है और वे इसे अगले प्रयत्न में आसानी से पा सकते हैं।

अभिभावक भी अपने असफल बच्चों का हौसला बढ़ाने की बजाए डांटते-फटकारते हैं। वे अपने बच्चे की समस्या को समझने की कोशिश नहीं करते हैं। वे अपने बच्चे की योग्यता को जाने बिना अपनी अधूरी महत्वाकांक्षा उस पर लाद देते हैं। इसका बच्चे के मस्तिष्क पर नकारात्मक असर पड़ता है और वह खुदकुशी जैसा कदम उठा लेता है। जाहिर है, हालात चिंताजनक होते जा रहे हैं। इसको रोकने के लिए समाज और सरकार दोनों को पहल करनी होगी। सरकार को चाहिए कि वह अंकों की बजाए छात्रों की प्रतिभा को परखने के लिए कोई बेहतर प्रणाली अपनाए।

वहीं अभिभावकों को अपने बच्चों पर अपनी महत्वाकांक्षाएं थोपने से गुरेज करना चाहिए। हर बच्चे की अभिरूचि अलग होती है। यदि बच्चा उसी अभिरूचि के मुताबिक विषयों का चयन करेगा तो निश्चित रूप से बेहतर प्रदर्शन कर सकेगा अन्यथा वह असफल साबित होगा। साथ ही अभिभावकों को बच्चों का हौसला बढ़ाते रहना होगा।

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