संपादक की कलम से: गठबंधन और कांग्रेस

Sandesh Wahak Digital Desk : लोकसभा चुनाव के पहले ही महागठबंधन में कांग्रेस की डगर कठिन नजर आ रही है। अभी सीटों के बंटवारे को लेकर बैठक हुई भी नहीं कि कई प्रमुख घटक दलों ने अपनी मंशा कांग्रेस आलाकमान के सामने साफ कर दी है।

तृणमूल कांग्रेस, सपा, जदयू-राजद और आम आदमी पार्टी ने संदेश भेज दिया है कि वह अपने प्रभाव वाले राज्यों में कांग्रेस को अधिक तरजीह देने के मूड में नहीं है और उसे सहयोगी के नाते गिनती की सीटें ही देगी। सूत्रों की माने तो इन दलों ने सीटों की संख्या भी कांग्रेस नेतृत्व को बता दी है साथ ही अपने बलबूते अधिकांश सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं।

सवाल यह है कि :

  • क्या कांग्रेस सीटों के बंटवारे की गुत्थी सुलझा सकेगी?
  • क्या विरोधी दलों के तीखे तेवर कांग्रेस की तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में मिली हार का साइड इफेक्ट है?
  • क्या इन दलों के सामने कांग्रेस झुकेगी और संबंधित राज्यों में अपने सहयोगी दलों की पिछलग्गू बनकर रह सकेगी?
  • क्या सपा, तृणमूल कांग्रेस, आम आदमी पार्टी मिलकर कोई नया सियासी पैंतरा चल रहे हैं?
  • क्या लोकसभा चुनाव से पहले ही गठबंधन का भविष्य अधर में लटकता दिख रहा है?

दरअसल, दिल्ली में कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन की चौथी बैठक में ही तस्वीर बहुत कुछ साफ हो गयी थी जब तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने सोनिया व राहुल से वार्ता किए बिना कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडग़े को पीएम पद का उम्मीदवार घोषित करने का प्रस्ताव पेश किया था। इस प्रस्ताव का समर्थन आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने किया था। इस प्रस्ताव को पेश करने के पहले ममता ने केजरीवाल और सपा प्रमुख अखिलेश यादव से वार्ता की थी।

ममता बनर्जी ने एक तीर से साधे कई निशाने

जाहिर है ममता ने इसके जरिए एक तीर से कई निशाने साधे। पहला उन्होंने राहुल को पीएम उम्मीदवार बनाने की कांग्रेस की मंशा का बड़े चालाकी भरे अंदाज में विरोध किया दूसरे यह भी साफ कर दिया कि कांग्रेस की हर बात मानने को तृणमूल कांग्रेस बाध्य नहीं है। ममता ने 31 दिसंबर तक सीटों के बंटवारे की शर्त भी कांग्रेस के सामने रख दी। वहीं बिहार में जदयू-राजद ने भी तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं।

बताया जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस जहां बंगाल में कांग्रेस को महज दो लोकसभा सीट देने को तैयार है वहीं जदयू-राजद उसे बिहार में चार सीटों का ऑफर भेजा है। केजरीवाल तो इससे भी दो कदम आगे हैं और वे पंजाब में कांग्रेस को एक भी सीट देने को तैयार नहीं है। वहीं उत्तर प्रदेश में सपा कांग्रेस को अस्सी सीटों में केवल आठ सीटें देने को तैयार है।

जाहिर है, यदि कांग्रेस इसे स्वीकार करती है तो उसकी राष्ट्रीय पार्टी होने की साख पर धब्बा लगेगा और वह क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू पार्टी के रूप में उभर कर सामने आएगी। इसका नुकसान उसे लोकसभा चुनाव में उठाना पड़ सकता है। यह देखना दिलचस्प होगा कि कांग्रेस सीट बंटवारे की गुत्थी को कैसे सुलझाती है।

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