संपादक की कलम से : न्यायपालिका में सुधार पर जोर

Sandesh Wahak Digital Desk : सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की हीरक जयंती वर्ष पर आयोजित एक समारोह में भारत के प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ ने न्यायपालिका में सुधार की वकालत की। इस संदर्भ में उन्होंने न केवल वकीलों से स्थगन संस्कृति से बाहर निकलकर पेशेवर संस्कृति अपनाने बल्कि कोर्ट में हाशिए पर रह रहे वर्गों की भागीदारी बढ़ाने पर भी जोर दिया। उन्होंने आंकड़ों के साथ बताया कि आज भी न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या काफी कम है और इसमें इजाफा किए जाने की जरूरत है।

सवाल यह है कि :

  • क्या प्रधान न्यायाधीश की इस अपील का असर न्यायपालिका से जुड़े लोगों पर होगा?
  • क्या स्थगन संस्कृति यानी तारीख-पर-तारीख लेने की प्रवृत्ति पर अंकुश लग सकेगा?
  • क्या महिलाओं व हाशिए पर रह रहे वर्गों के लोगों की भागीदारी बढ़ाने के लिए निकट भविष्य में न्यायपालिका कोई निर्णय लेगी?
  • क्या अदालतों की संख्या बढ़ाए बिना अधिवक्ता पेशेवर संस्कृति को अपना सकेंगे?
  • क्या मुकदमों का बोझ कम किए बिना हालात सुधर सकेंगे?

जब से डी.वाई. चंद्रचूड़ भारत के चीफ जस्टिस बने हैं, वे देश की न्यायपालिका में सुधार की तमाम कोशिशें कर रहे हैं। मुकदमों के फैसलों का विभिन्न भाषाओं में अनुवाद का मामला हो या ऑनलाइन सुनवाई की व्यवस्था करना रहा हो, उन्होंने इसको न्यायालयों में व्यापक स्तर पर लागू करने की पहल की और यह बहुत कुछ सफल भी रहा है।

दीवानी मामलों में यह स्थिति बेकाबू हो चुकी

उन्होंने आदेश दे रखा है कि कोर्ट में जरूरी मामलों को छोड़कर वकील विभिन्न आधार पर केस की सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध न करे। इसके कारण तारीख-पर-तारीख की परंपरा कायम रहती है और लोगों को वक्त से न्याय नहीं मिल पाता है। दरअसल, इस स्थगन संस्कृति के कारण ही आज विभिन्न अदालतों में लाखों केस पेंडिंग हैं और कई केस तो कई दशकों से चल रहे हैं, जिनका आज तक निपटारा नहीं हो सका है। विशेषकर दीवानी मामलों में यह स्थिति बेकाबू हो चुकी है।

बावजूद इसके अदालतों में केस को लेकर स्थगन की संस्कृति खत्म होने का नाम नहीं ले रही है। खुद चीफ जस्टिस भी मानते हैं कि तारीख-पर-तारीख की यह परंपरा तभी खत्म हो सकती है जब अधिवक्ता पेशेवर संस्कृति को अपनाएंगे। साथ ही उन्होंने इस पेशे में आधी आबादी की बेहद कम संख्या पर भी चिंता जताई है। इसमें दो राय नहीं है कि चीफ जस्टिस की ये चिंताएं जायज हैं और इसका निपटारा खुद न्यायपालिका ही कर सकती है।

हकीकत यह है कि केसों की संख्या बढऩे का सबसे बड़ा कारण देश में पर्याप्त संख्या में अदालतों और न्यायाधीशों के नहीं होने के साथ-साथ छोटी-छोटी बातों में केस करने की बढ़ती प्रवृत्ति भी है। साफ है, न्यायपालिका में सुधार तभी हो सकेगा जब कार्यपालिका और न्यायपालिका मिलकर इसका हल निकालेगी। यदि चीफ जस्टिस के सुधार को अमल में लाया जा सका तो देश की न्यायपालिका से त्वरित न्याय की प्रक्रिया बेहद आसान हो जाएगी।

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