संपादक की कलम से : भूकंप के खतरे पर ध्यान देना जरूरी

Sandesh Wahak Digital Desk : नेपाल में एक घंटे में आए चार भूकंप के झटकों ने उत्तर भारत को हिला दिया। हालांकि पड़ोसी नेपाल को छोड़कर कहीं से नुकसान की खबर नहीं आई है लेकिन हाल में कई देशों में आ रहे बड़े भूकंपों से दुनिया भर के भूगर्भ वैज्ञानिक चिंतित हैं और सरकारों को लगातार चेता रहे हैं। वैज्ञानिक इस बात की ताकीद कर चुके हैं कि एक महाभूकंप भी आ सकता है।

सवाल यह है कि :-

  • क्या इस प्राकृतिक आपदा से निपटा जा सकता है?
  • क्या बड़े भूकंपों से होने वाले व्यापक जान-माल के नुकसान को कम किया जा सकता है?
  • क्या भारत की केंद्र और राज्य सरकारें इस प्राकृतिक विपदा को लेकर गंभीर हैं?
  • क्या इसका सामना करने के लिए कोई विशेष रणनीति बनायी गयी है?
  • क्या दुनिया भूकंप से निपटने के लिए जापानी तौर-तरीकों से सबक नहीं सीख सकती है?
  • सरकार ने भुज जैसे भूकंप से कोई सबक क्यों नहीं लिया?
  • आखिर मकानों के निर्माण में भूकंपरोधी तकनीक को क्यों नहीं अपनाया जा रहा है?

भारत का अधिकांश हिस्सा भूकंप के प्रभाव क्षेत्र में आता है। पहाड़ी राज्य सबसे अधिक संवेदनशील हैं और ये भूकंप के सबसे डेंजर जोन में रखे गए हैं। मैदानी इलाके भी इससे अछूते नहीं है। उत्तर भारत का पूरा क्षेत्र भूकंप की रेंज में आता है।

दरअसल, पृथ्वी की चार प्रमुख परतें हैं, जिसे इनर कोर, आउटर कोर, मेंटल व क्रस्ट कहते हैं। पृथ्वी के नीचे मौजूद प्लेट्स घूमती रहती हैं, जिसके आपस में टकराने पर सतह के नीचे कंपन शुरू होता है और जब ये प्लेट्स अपनी जगह से खिसकती या दूसरी प्लेट से टकराती हैं तो भूकंप के झटके महसूस किए जाते हैं।

सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव

साफ है, पृथ्वी की आंतरिक निर्माण प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता  है। भूकंप के झटकों की तीव्रता जितनी अधिक होती है उतने ही भयावह परिणाम होते हैं। गुजरात के भुज और तुर्कीए में आया भूकंप इसका उदाहरण है। यही नहीं मनुष्य आज भी भूकंप आने की सटीक भविष्यवाणी करने में सक्षम नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में सावधानी ही सबसे बड़ा बचाव है। सच यह है कि भूकंप आने से उतने लोग हताहत नहीं होते हैं जितने मानव निर्मित निर्माणों के कारण होते हैं।

भूकंप के कारण कंक्रीट की बहुमंजिला इमारतें ढह जाती हैं और इससे जान-माल का काफी नुकसान होता है। वहीं भूकंप से बचने को जरूरी जानकारी का अभाव भी तबाही को बढ़ा देता है। साफ है, भूकंप के खतरों से बचने के लिए सरकार को न केवल भूगर्भ वैज्ञानिकों की सलाह पर अमल करने बल्कि निर्माण प्रक्रिया में भी संशोधन करने और उसे प्रकृति केंद्रित बनाने की जरूरत है।

मसलन, पहाड़ों पर लकड़ी के मकानों के निर्माण को प्रोत्साहित किया जाए और मैदानी इलाके में भूकंपरोधी इमारतों के निर्माण को अनिवार्य किया जाए। साथ ही जापान की तर्ज पर प्राथमिक स्तर पर बच्चों को इससे बचने के उपायों और उसका प्रशिक्षण दिए जाने की व्यवस्था की जानी चाहिए अन्यथा एक बड़ा भूकंप तबाही ला देगा।

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