संपादक की कलम से: हार की खीज या खतरे की घंटी

Sandesh Wahak Digital Desk: हिंदी पट्टी के तीन राज्यों राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में हार कांग्रेस व उसके गठबंधन सहयोगियों को पच नहीं रही है। इसको लेकर सबसे पहले कांग्रेस नेता कार्ति चिदंबरम ने उत्तर-दक्षिण की राजनीति शुरू की। विधानसभा चुनाव में दक्षिणी राज्य तेलंगाना में कांग्रेस की जीत और उत्तर भारत के तीन राज्यों में सत्ता से बेदखल होने के बाद कार्ति ने सोशल मीडिया मंच एक्स पर लिखा, द साउथ। इसके साथ ही कांग्रेस और उनके गठबंधन सहयोगियों से जुड़े लोगों ने इस सियासत को हवा देनी शुरू कर दी।

बचा खुचा काम द्रविड़ मुनेत्र कषगम के सांसद डीएनवी सेंथिल कुमार ने लोकसभा में हिंदी पट्टी के राज्यों को गौमूत्र वाला राज्य बताकर पूरा कर दिया। हालांकि सेंथिल ने अपने वक्तव्य पर माफी मांग ली है लेकिन उत्तर-दक्षिण की इस सियासत को विपक्ष निकट भविष्य में आगे नहीं बढ़ाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। सियासत दां अभी तक इन राज्यों में भाषायी आधार पर उत्तर-दक्षिण की खाई को अंदरखाने चौड़ी करते रहे हैं।

सवाल यह है कि :

  • क्या भाजपा के विरोध में देश की अखंडता को चोट पहुंचाने की कोशिश की जा रही है?
  • क्या सियासी स्वार्थो की पूर्ति के लिए विभाजनकारी प्रवृत्ति को हवा दी जा रही है?
  • क्या कांग्रेस नेता और द्रमुक सांसद ने इसका आरंभ कर दिया है?
  • क्या सत्ता पाने के लिए देश को दांव पर लगाने की कुछ सियासी दलों को जनता स्वीकार करेगी?
  • क्या लोकसभा चुनाव में इसका खामियाजा इन दलों को उठाना पड़ेगा?

आजादी के बाद उत्तर-दक्षिण की नींव तत्कालीन सरकार ने उसी समय रख दी गई थी जब दक्षिण के राज्यों का गठन भाषायी आधार पर किया था। इसी को आधार बनाकर वहां क्षेत्रीय दल उभरे। वे आज भी उसी लाइन-लेंथ पर चल रहे हैं। यहां जातिवाद नहीं बल्कि क्षेत्रवाद और भाषावाद के आधार पर सरकारों का गठन होता है।

घृणा उत्पन्न करने के लिए कथित मनुवाद को निशाने पर

अभी तक यह प्रवृत्ति ढंकी हुई थी लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद कांग्रेस के साथ मिलकर क्षेत्रीय दलों ने इस प्रवृत्ति को और हवा देनी शुरू की। तमिलनाडु में इसके साथ सनातन धर्म को भी जोड़ दिया गया। घृणा उत्पन्न करने के लिए कथित मनुवाद को निशाने पर लिया गया और उसकी आड़ में सनातन धर्म को भला-बुरा कहा जाने लगा।

विधानसभा चुनाव परिणामों को देखकर कांग्रेस और इसके सहयोगी दल द्रमुक ने अब उत्तर-दक्षिण के बीच विभाजनकारी प्रवृत्ति को अपनी सियासत में शामिल करता दिख रहा है। भले ही द्रमुक सांसद ने माफी मांग ली है लेकिन कांग्रेस नेता जिन्होंने इस सियासत को हवा दी उन्होंने ऐसा कोई कदम नहीं उठाया। साफ है, यह स्थितियां लोकतांत्रिक देश के लिए किसी खतरे की घंटी से कम नहीं है। इस मामले पर चुनाव आयोग और खुद संसद को संज्ञान लेना चाहिए। साथ ही जनता को भी ऐसे विभाजनकारी तत्वों से सावधान रहना होगा अन्यथा देश की अखंडता खतरे में पड़ सकती है।

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