संपादक की कलम से : क्षेत्रीय क्षत्रप और महागठबंधन

Sandesh Wahak Digital Desk : भाजपा के खिलाफ विपक्षी दलों द्वारा बनाए गए महागठबंधन की चौथी बैठक आज होने वाली है लेकिन इसके पहले सियासी संकेत ठीक नहीं मिल रहे हैं। लोकसभा चुनाव के पूर्व महागठबंधन में शामिल क्षेत्रीय दल कांग्रेस पर दबाव बनाकर अपनी शर्तों पर सीटों का बंटवारा चाहते हैं।

इसके संकेत न केवल सपा बल्कि आम आदमी पार्टी व तृणमूल कांग्रेस ने भी दे दिए हैं। अरविंद केजरीवाल ने संकेत दिए हैं कि वह पंजाब की सभी लोकसभा सीटों पर अकेले चुनाव लड़ने के मूड में है। वहीं ममता भी बंगाल में कांग्रेस को केवल दो सीट ही देने पर विचार कर रही हैं।

सवाल यह है कि :

  • क्या क्षेत्रीय दलों के क्षत्रप कांग्रेस के नेतृत्व को लोकसभा चुनाव में स्वीकार नहीं करना चाहते हैं?
  • क्या तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव में भाजपा से करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस के पास क्षेत्रीय दलों से समझौता करने के अलावा कोई चारा नहीं है?
  • क्या क्षेत्रीय दल कांग्रेस को मजबूत करने में अपना योगदान देने को तैयार नहीं है?
  • क्या क्षेत्रीय दल अपने जनाधार को कांग्रेस के पास सिफ्ट करने से घबरा रहे हैं?
  • क्या यह खींचतान लोकसभा चुनाव के पूर्व गठबंधन को निस्तेज कर देगा?

केंद्र से भाजपा की सत्ता उखाड़ फेंकने के लिए जिस जोश से विपक्षी दलों ने इंडिया गठबंधन बनाया था, उससे लगता था कि लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ेगा लेकिन पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव परिणामों ने गठबंधन के घटक दलों को अपनी सियासत को लेकर चिंतित कर दिया है। तेलंगाना को छोडक़र कांग्रेस को अन्य चार राज्यों में हार का सामना करना पड़ा।

छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा ने विपक्ष को दी कारारी शिकस्त

छत्तीसगढ़, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा ने उसे कारारी शिकस्त दी। इसका सीधा असर गठबंधन साथियों पर पड़ा। अभी तक जो घटक दल कांग्रेस के झंडे तले एकजुट हो रहे थे, वे छिटकते दिख रहे हैं। कांग्रेस और सपा में तो विधानसभा चुनाव के दौरान ही तल्खी दिखी। वहीं आम आदमी पार्टी और अब तृणमूल कांग्रेस भी उसी राह पर चलती दिख रही है।

सच यह है कि कांग्रेस की सबसे बड़ी चुनौती इन क्षेत्रीय दलों से तालमेल बिठाने की है। विशेषकर सीटों को लेकर ये दल अपने राज्यों में अपने जनाधार को कमजोर करने के मूड में नहीं हैं। इन क्षेत्रीय दलों को लगता है कि यदि वे अपने क्षेत्र में कांग्रेस को अधिक सीटें देंगे तो आने वाले विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और मजबूत होगी और इससे उनको भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसी स्थिति में ये दल गठबंधन की मीटिंग से पहले ही कांग्रेस आलाकमान तक अपना संदेश पहुंचा रहे हैं।

वहीं कांग्रेस के सामने मुश्किल यह है कि वह तेलंगाना, कर्नाटक और हिमाचल प्रदेश में विजय हासिल करने के बाद पीछे मुडऩे को तैयार नहीं है। यदि वह क्षेत्रीय दलों की पिछलग्गू बनेगी तो उसे भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि महागठबंधन किस राह पर चलता है।

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