मंडी परिषद: संयुक्त निदेशक को बचाने के लिए हर हथकंडे अपना रहा मंडी मुख्यालय

सात बिंदुओं की आख्या में कहीं गोल-मोल जवाब, तो कहीं आरोपी को बचाने का प्रयास

Sandesh Wahak Digital Desk : राज्य कृषि उत्पादन मंडी परिषद मुख्यालय अपने संयुक्त निदेशक को बचाने के लिए हर हथकंडे अपना रहा है। संयुक्त निदेशक (निर्माण) महेंद्र कुमार के खिलाफ जितनी शिकायतें थी, लगभग सभी में क्लीनचिट देने का प्रयास किया गया। लगभग सभी जवाब गोल-मोल दिए गए और आईजीआरएस विलोपित करने का अनुरोध कर दिया गया। हालांकि जिस तरह से यह मामला विपक्ष के अन्य विधायकों के पास पहुंचा है इससे यह स्पष्ट है कि प्रकरण आगे चलकर तूल पकड़ेगा।

आख्या से असंतुष्ट विधायकों ने इस प्रकरण को अब विधानसभा में उठाने का निर्णय लिया है साथ ही मुख्यमंत्री से मिलकर शिकायत करने की बात भी कही है। इन विधायकों का कहना है कि इस आख्या से वह बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं हैं।

आजमगढ़ में करोड़ों के घोटालों की जांच तीन साल बाद भी दबी

आजमगढ़ में 34 नग एग्रीकल्चर मार्केटिंग हब (एएमएच) बनना था। प्रत्येक एएमएच की लागत लगभग 50 लाख अथवा उससे ऊपर बताई जा रही है। आरोप है कि घटिया एवं मानक विहीन होने के कारण तीन वर्ष पहले तत्कालीन निदेशक जेपी सिंह ने जांच कमेटी बनाकर स्थलीय सत्यापन करने का आदेश दिया था। लेकिन महेंद्र कुमार द्वारा जांच में सांठ-गांठ कर जांच आख्या प्रस्तुत नहीं होने दी गई।

इस प्रकरण की आख्या में चीफ इंजीनियर ग्रेड-2 सत्य प्रकाश ने जवाब दिया कि एएचएम प्रकरण पर जांच के लिए गठित समिति के सदस्यों के सेवानिवृत्ति हो जाने से जांच रिपोर्ट नहीं प्राप्त हुई। संयुक्त निदेशक (निर्माण) जोन-4 को निर्देशित किया गया है कि जांच आख्या उपलब्ध कराए।

अब आसानी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि केंद्र और राज्य सरकार का यह संयुक्त प्रोजेक्ट भ्रष्टाचार का शिकार हो गया और मंडी मुख्यालय के आलाधिकारी तीन वर्ष बाद भी जांच नहीं करा सके। जाहिर सी बात है कि इस भ्रष्टाचार के आरोपी महेंद्र प्रसाद को बचाने के लिए जांच दबी रही। जांच को भी ऐसे व्यक्ति को दिया गया है जिसने पहाड़िया मंडी के भ्रष्टाचारी को बचाने के लिए दो वर्ष से जांच ही नहीं की।

क्लर्क के पूरे कार्यकाल की जांच से किया किनारा

प्रयागराज निर्माण खंड में क्लर्क मंजीत सिंह द्वारा फर्जी फर्में बनवाकर ढाई करोड़ रुपए का भुगतान कराया गया था। संदेश वाहक समाचार पत्र ने प्रश्न उठाया था कि दोषी क्लर्क के संपूर्ण कार्यकाल की जांच कराई जाए। जिससे पूर्व में तैनात अधिकारियों की कारस्तानी भी उजागर हो सके। प्रश्न यह भी था कि आखिर क्लर्क मंजीत सिंह झांसी में तैनात होकर किसकी अनुमति से प्रयागराज पहुंचकर भुगतान करा रहा था। मंजीत सिंह काम प्रयागराज में कर रहा था और झांसी में तैनात रहे डीडीसी मंजीत को सैलरी किस आधार पर दे रहे थे। एक स्थान पर मंजीत ने महेंद्र कुमार को मोटा कमीशन देने की बात कबूली थी। लेकिन इस प्रश्न को भी चीफ इंजीनियर सत्य प्रकाश गोल-मोल जवाब देकर बचा गए।

लाल डायरी पर नहीं दिया कोई जवाब

आरोपी क्लर्क मंजीत सिंह द्वारा बनाई गई कमीशन की लाल डायरी की छायाप्रति विधायक ने शिकायत के साथ भेजी थी। डायरी में महेंद्र कुमार द्वारा एक करोड़ 30 लाख रुपए कमीशन प्राप्त करने का भी जिक्र था। बावजूद इसके लाल डायरी को लेकर शासन को भेजी गई रिपोर्ट में कोई उल्लेख नहीं है। जाहिर सी बात है कि लाल डायरी को लेकर मंडी प्रशासन किनारा कर रहा है। जबकि लाल डायरी मंजीत सिंह द्वारा कोर्ट में नोटरी कराई हुई है।

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