रज्जाक बलोच का दावा, पाकिस्तान का कंट्रोल अब सिर्फ क्वेटा तक सीमित

नई दिल्ली: बलोचिस्तान में पाकिस्तान की फौज की हुकूमत अब सिर्फ कागजों पर रह गई है। बलोच अमेरिकन कांग्रेस के सेक्रेटरी जनरल रज्जाक बलोच ने एक साक्षात्कार में साफ तौर पर कहा कि अब बलोचिस्तान का 70-80 फीसदी हिस्सा फौज के कंट्रोल से बाहर हो चुका है। उन्होंने बलोच लोगों की आजादी की लड़ाई को लेकर भारत और अमेरिका से खुलकर समर्थन मांगा है।
रज्जाक बलोच का कहना है कि बलोचिस्तान के ज़्यादातर इलाके अब “नो-गो ज़ोन” बन चुके हैं, जहां पाकिस्तानी सेना जाने से कतराती है। यहां तक कि क्वेटा जैसे शहरों में भी शाम ढलते ही सैनिक घरों में दुबक जाते हैं और बाहर निकलने की हिम्मत नहीं करते। उनके मुताबिक, सेना ने बलोचिस्तान को एक मिलिट्री छावनी में तब्दील कर दिया है, लेकिन अब वहां की जनता जाग चुकी है और रोज़ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं- चाहे फौज कितना भी दमन करे।
मरंग बलोच की गिरफ्तारी के बाद भी नहीं थमा जनविरोध
बलोच नेता ने बताया कि मरंग बलोच जैसे प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी के बावजूद बलोच लोगों का हौसला टूटा नहीं है। बलोचिस्तान के अलग-अलग जिलों में लगातार प्रदर्शन हो रहे हैं। उन्होंने सरदार अख्तर मेंगल की कोशिशों की तारीफ की, लेकिन साथ ही यह भी जोड़ा कि अब सिर्फ आंतरिक संघर्ष से काम नहीं चलेगा, अंतरराष्ट्रीय समर्थन बेहद जरूरी है।
भारत और अमेरिका से खुला समर्थन मांगा
रज्जाक बलोच ने बिना किसी झिझक के भारत और अमेरिका से अपील की कि वे बलोचिस्तान की आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर खड़े हों। जब उनसे पूछा गया कि क्या भारत में निर्वासित बलोच सरकार का गठन किया जा सकता है, तो उन्होंने कहा, “हम पाकिस्तानी नहीं हैं जो भीख मांगें, हम मर्द हैं और मर्दों की तरह बात करते हैं। अगर भारत हमारा साथ देगा, तो बलोचिस्तान हमेशा उसके लिए दरवाज़े खुले रखेगा।”
रज्जाक बलोच ने पाक सेना को “बरबर आर्मी” कहते हुए चेताया कि अगर दुनिया ने आज बलोच लोगों की आवाज़ नहीं सुनी, तो कल यही सेना पूरे दक्षिण एशिया को खतरे में डाल सकती है। उन्होंने कहा कि बेहतर होगा कि ये फौज इज्ज़त के साथ लौट जाए, वरना हालात बांग्लादेश जैसे हो सकते हैं, जब उन्हें अपने बूट छोड़कर भागना पड़ा था। बलोच नेता ने दुनिया भर के लोकतांत्रिक देशों से अपील की कि वे बलोच प्रतिनिधियों को मंच दें, उनकी आवाज़ सुनें और पाकिस्तान के अत्याचार के खिलाफ खड़े हों। उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि ये सिर्फ एक क्षेत्रीय संघर्ष नहीं, बल्कि इंसाफ और मानवाधिकारों की लड़ाई है।
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