संपादक की कलम से: महंगाई के मोर्चे पर चुनौतियां

देश में महंगाई दर में भले गिरावट आई हो, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की चिंता कम नहीं हुई है। खुद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास मानते हैं कि महंगाई के मोर्चे पर अभी कई चुनौतियां हैं, जिससे उबरे बिना स्थिति सामान्य नहीं हो पाएगी।

Sandesh Wahak Digital Desk: देश में महंगाई दर (Inflation Rate) में भले गिरावट आई हो, भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की चिंता कम नहीं हुई है। खुद आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास मानते हैं कि महंगाई के मोर्चे पर अभी कई चुनौतियां हैं, जिससे उबरे बिना स्थिति सामान्य नहीं हो पाएगी। हालत यह है कि महंगाई दर में कमी के बावजूद खुदरा बाजार में खाद्य वस्तुओं से लेकर सब्जियों तक के दाम लगातार बढ़ते जा रहे हैं। इसके कारण आम आदमी की हालत खराब होती जा रही है।

सवाल यह है कि…

  • सरकार और आरबीआई की तमाम कोशिशों के बावजूद महंगाई पर नियंत्रण क्यों नहीं लग रहा है?
  • क्या रूस-यूक्रेन युद्ध और कोरोना के साइड इफेक्ट ने वैश्विक अर्थव्यवस्था को घुटनों पर ला दिया है?
  • क्या देश में बढ़ती बेरोजगारी व घटती क्रय शक्ति ने बाजार के पूंजी प्रवाह को बाधित कर दिया है?
  • क्या सरकार के पास महंगाई को रोकने के लिए कोई ठोस प्लान नहीं है?
  • क्या राज्यों में सत्ताधारी दलों के रेवड़ी कल्चर के कारण महंगाई बेपटरी हो गई है?
  • क्या सामान्य मानसून महंगाई की दर पर कोई प्रभाव डाल सकेगी?

बेतहाशा महंगाई से दुनिया के ज्यादातर देश परेशान

दुनिया भर के देशों में महंगाई में बेतहाशा वृद्धि हुई है। इसकी सबसे बड़ी वजह कोरोना महामारी (Corona Pandemic) रही है। लंबे लॉकडाउन के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था (world economy) चौपट हो गयी। रही सही कसर रूस-यूक्रेन युद्ध ने पूरी कर दी। युद्ध के चलते यूरोपीय देशों को रूस-यूक्रेन से होने वाली खाद्यान्न की आपूर्ति लगभग बंद हो गई है। लिहाजा खाद्य वस्तुओं की कीमतों में इजाफा हो रहा है। इस वैश्विक स्थिति का असर भारत पर भी पड़ा है। अकेले कोरोना काल में कई लाख लोगों की नौकरियां चली गयीं। उद्योग-धंधे बंद होने के कारण आर्थिक गतिविधियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा।

पिछले साल देश में मुद्रास्फीति (inflation in the country) 7.8 फीसदी तक पहुंच गयी। डॉलर के मुकाबले रुपये में तेजी से गिरावट दर्ज की गई। हालांकि रिजर्व बैंक ने महंगाई को थामने के लिए कई उपाय किए और इसका परिणाम यह रहा है कि मुद्रास्फीति की दर 4.25 फीसदी पर पहुंच चुकी है। बावजूद इसके यह रिजर्व बैंक के मानक चार फीसदी से अधिक है। मुद्रास्फीति को कम करने में सबसे अहम रोल भारतीय कृषि ने निभाया है। इसने खाद्यान्न की कमी नहीं होने दी।

वहीं सरकारी आंकड़ों में महंगाई दर का बाजार पर असर होता नहीं दिख रहा है। यहां अभी भी वस्तुओं के दामों में इजाफा जारी है। ऐसे में एक बार फिर अच्छे मानसून और रूस-यूक्रेन युद्ध पर भारत की नजरें टिकी हुई हैं।

आरबीआई गवर्नर (RBI Governor) भी मानते हैं कि यदि मानसून सामान्य रहा तो खाद्यान्न आपूर्ति बेहतर रहेगी और इसका सीधा असर महंगाई दर (Inflation Rate) पर पड़ेगा। बावजूद इसके सरकार को यह समझना होगा कि केवल सामान्य मानसून या खाद्यान्न आपूर्ति से काम नहीं चलेगा। इसके लिए उसे रोजगार के नए साधनों को विकसित कर क्रय शक्ति में इजाफा करना होगा ताकि उपभोक्ता वस्तुओं की मांग में तेजी आए अन्यथा हालात खराब हो सकते हैं।

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