संपादक की कलम से: कांग्रेस में बिखराव के निहितार्थ

Sandesh Wahak Digital Desk : लोकसभा चुनाव के पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी भले ही भारत जोड़ो न्याय यात्रा की अगुवाई कर रहे हों लेकिन उनकी अपनी ही पार्टी में तेजी से बिखराव हो रहा है। पुराने कांग्रेसी भी अब पार्टी को अलविदा कहने लगे है। खुद कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे पार्टी की टूट को बचाने से रोक नहीं पा रहे हैं। पार्टी में न केवल असंतोष फैल रहा है बल्कि तेजी से सतह पर आ गया है।

सवाल यह है कि :

  • देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस अपने सबसे बुरे दौर से क्यों गुजर रही है?
  • उसके कद्दावर नेता पार्टी से किनारा क्यों कस रहे हैं?
  • क्या कमजोर होती कांग्रेस, भाजपा जैसी संगठनात्मक रूप से मजबूत पार्टी का चुनाव में मुकाबला कर सकेगी?
  • क्या कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की नीतियां इसके लिए जिम्मेदार नहीं है?
  • अपने जीताऊ नेताओं तक को रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया जा रहा है?
  • क्या शीर्ष नेतृत्व को इस पर मंथन करने की जरूरत नहीं है?

पिछले एक दशक में कांग्रेस के तमाम कद्दावर नेता पार्टी छोड़ चुके हैं। गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, मिलिंद देवड़ा, ज्योतिरादित्य सिंधिया, बाबा सिद्दीकी, अशोक चव्हाण जैसे दिग्गज नेता पार्टी को अलविदा कह चुके हैं। अब मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कद्दावर नेता कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ के पार्टी छोड़ने की चर्चा तेज हो गयी है। जिस तरह नकुलनाथ ने अपने एक्स अकाउंट से कांग्रेस का लोगो हटा दिया है, उससे यही संकेत मिल रहा है। यही नहीं अब मनीष तिवारी के भी पार्टी छोड़ने की अटकलें तेज हो गयी है।

कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बगावत के सुर बुलंद

दरअसल, यह सब एक दिन में नहीं हुआ है। कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ बगावत के सुर तब उठे थे जब पार्टी के जी-23 गु्रप के नेताओं ने मजबूत पार्टी नेतृत्व का  मुद्दा उठाया था लेकिन इस पर गौर करने की जगह पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने इन नेताओं को ही किनारे लगाना शुरू कर दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि इस ग्रुप के गुलाम नबी आजाद, कपिल सिब्बल, जितिन प्रसाद, योगानंद शास्त्री और मिलिंद देवड़ा ने पार्टी छोड़ दी है।

हकीकत यह है कि पार्टी में पुराने कांग्रेसी नेताओं की लगातार उपेक्षा की जा रही है। कई बार संगठन के नेताओं ने इस पर सवाल उठाया लेकिन शीर्ष नेतृत्व की तरफ से कोई कार्रवाई नहीं की गयी। पार्टी गुटबाजी में फंस चुकी है। यही नहीं शीर्ष नेतृत्व ने पार्टी छोडक़र जाने वाले नेताओं को मनाने की कोशिश तक नहीं की। लिहाजा ठीक चुनाव के पहले एक बार फिर कांग्रेस में टूट होती दिख रही है। लोकतंत्र में पार्टी को किसी एक व्यक्ति की इच्छा पर नहीं चलाया जा सकता है।

इसमें सबकी बातें सुनी जानी चाहिए और जरूरत पडऩे पर सुधार भी किए जाने चाहिए। जिस पार्टी में ऐसा होता है, वहां टूट होनी तय होती है। फिलहाल कांग्रेस चाहे जितना दम भर ले लोकसभा चुनाव में उसके दिग्गजों का पार्टी से किनारा कसना उसे महंगा पड़ेगा। कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व का इससे सबक लेने की जरूरत है।

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