संपादक की कलम से: सौर मिशन की सफलता के अर्थ

Sandesh Wahak Digital Desk : भारत का पहला सौर मिशन पृथ्वी से डेढ़ लाख किमी की लंबी यात्रा पूरी कर अपनी मंजिल तक पहुंच गया। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो)ने अंतरिक्ष यान आदित्य एल-1 को सूर्य के लैग्रेंज प्वाइंट-1 के हेलो कक्षा में स्थापित कर दिया। यह मिशन न केवल सूर्य के निर्माण प्रक्रिया बल्कि पृथ्वी तक पहुंचने वाले विकिरण और उससे होने वाले नुकसान का अध्ययन करेगा। इसके पहले सिर्फ अमेरिका ने सूर्य के अध्ययन के लिए सौर मिशन अंतरिक्ष में भेजा है।

सवाल यह है कि :

  • भारत की इस उपलब्धि का भारत के अंतरिक्ष विज्ञान के क्षेत्र पर क्या असर पड़ेगा?
  • क्या इससे सौर विकरण से अंतरिक्ष में मौजूद उपग्रहों को होने वाले नुकसान को बचाया जा सकेगा?
  • क्या इसरो सूर्य के अध्ययन से प्राप्त जानकारी को दुनिया से साझा करेगा?
  • क्या अंतरिक्ष बाजार में भारत का दबदबा बढ़ गया है?
  • क्या इसका असर देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा?
  • क्या भारत के सूर्य मिशन ने सूरज के अध्ययन की राह आसान कर दी है?

चंद्रमा के दक्षिणी धु्रव पर चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग कराने के बाद इसरो ने अपने खाते में एक और ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज कर ली है। चार माह की यात्रा करने के बाद आदित्य एल-1 अपनी मंजिल पर पहुंचने गया है। हालांकि उसने अपना काम रास्ते से ही शुरू कर दिया था। इस अंतरिक्ष यान के जरिए भारत का उद्देश्य सूर्य का अध्ययन करना है। यह अध्ययन इसलिए भी जरूरी हो गया है ताकि अंतरिक्ष में तैर रहे सैकड़ों उपग्रहों को सूर्य के विकिरण से बचाया जा सके।

सौर तूफानों की चपेट में आकर करीब 40 उपग्रह बर्बाद हो चुके

यह तभी संभव है जब सूर्य का अध्ययन किया जा सके और यह बिना उसके करीब पहुंचे संभव नहीं है। आंकड़ों की माने तो पिछले साल ही सौर तूफानों की चपेट में आकर करीब 40 उपग्रह बर्बाद हो चुके हैं। ये सौर तूफान सूर्य से निकल कर अंतरिक्ष में फैल जाते हैं और इसका विकरण इतना घातक होता है कि यह किसी भी वस्तु को नष्ट कर सकते हैं। पृथ्वी पर भी इसका विकरण पहुंचता है।

हालांकि इसका घातक प्रभाव पृथ्वी के चारों ओर फैले चुंबकीय प्रभाव से कम हो जाता है लेकिन अंतरिक्ष में ऐसी कोई प्राकृतिक व्यवस्था नहीं है। दरअसल, आने वाले दिनों में अंतरिक्ष उपग्रहों को भेजने की प्रक्रिया और तेज होगी ऐसे में इन उपग्रहों को सौर तूफानों से सुरक्षित करना सबसे बड़ी चुनौती है।

सूर्य के विकिरण से इन उपग्रहों को तभी सुरक्षित किया जा सकता है जब विकरण की रफ्तार और उसके घातक होने की सीमा का आंकलन किया जा सके। इस मामले में आदित्य एल-1 हमारी सहायता करेगा। वह न केवल सूरज के राज खोलेगा बल्कि उसके सबसे घातक हथियारों से बचाव का रास्ता भी बता सकेगा। लिहाजा भारत की यह उपलब्धि न केवल दुनिया बल्कि मानवता के लिए लाभदायक सिद्ध होगी। इसके अलावा इसका सीधा असर भारत की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा। साथ ही अंतरिक्ष विज्ञान के प्रति युवा पीढ़ी की रुझान भी बढ़ेगी।

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