Lucknow: ‘अपने हिस्से का युद्ध’ पुस्तक का हुआ लोकार्पण, स्त्री विमर्श पर नई सोच की उठी आवाज़

Sandesh Wahak Digital Desk: मशहूर लेखिका और ‘आकाशगंगा’ सांस्कृतिक संस्था की अध्यक्ष शीला पांडे की नई पुस्तक “अपने हिस्से का युद्ध (स्त्री विमर्श)” का भव्य विमोचन समारोह राजधानी लखनऊ के कैफ़ी आज़मी अकादमी में संपन्न हुआ। इस मौके पर साहित्य और समाज के कई दिग्गज चेहरे मौजूद रहे, जिन्होंने न सिर्फ किताब की गहराई पर चर्चा की, बल्कि स्त्री संघर्षों के नए पहलुओं को भी उजागर किया।
पुस्तक की विशेषताएं क्या हैं?
“अपने हिस्से का युद्ध” सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि वो दस्तावेज़ है जो महिलाओं के निजी, सामाजिक और मानसिक संघर्षों की कहानी कहती है। डॉ. रूपरेखा वर्मा, जो इस कार्यक्रम की मुख्य अतिथि और वक्ता थीं, ने कहा “यह किताब स्त्रियों के जीवन की गहराइयों में उतरकर उनके संघर्षों और विरोध की आवाज़ बनती है। यह पुस्तक पुरुष वर्चस्व की मानसिकता को खुली चुनौती देती है और स्त्री विमर्श के नए आयाम स्थापित करती है।”
उन्होंने यह भी कहा कि अब महिलाएं खुद अपना इतिहास लिख रही हैं और यह बदलाव का संकेत है। अगर इस अस्वस्थ युद्ध की असली जड़ सामाजिक और मानसिक संरचना पर और ज्यादा रोशनी डाली जाती, तो यह किताब और भी ज़्यादा प्रभावशाली हो सकती थी।”
लेखिका का दृष्टिकोण
लेखिका शीला पांडे ने पुस्तक से एक अंश पढ़ते हुए कहा “बहुमूल्य सिक्के अपनी-अपनी तिजोरियों में बंद हैं। जिस दिन ये बाजार में सामूहिकता से उतर दिए गए, तो आधिपत्य और कारोबार की चोटी स्त्रियों की झोली में आ गिरेगी।” यह वाक्य उनकी लेखनी की सोच और गहराई को दर्शाता है।
विशेषज्ञों की राय
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ आलोचक डॉ. इंदीवर पांडेय ने कहा “शीला पांडे के लेखन में सामाजिक सरोकारों की साफ झलक है। यह पुस्तक स्त्री विमर्श को नई समझ के साथ सामने लाती है।”
साहित्यकार सत्येंद्र कुमार रघुवंशी ने कहा “लेखिका ने तार्किक और असरदार ढंग से उन सवालों को उठाया है, जिनकी अनदेखी पुरुष समाज ने बरसों की है।”
डॉ. रीता चौधरी ने इसे साधारण दिखने वाली, लेकिन भीतर से क्रांतिकारी पुस्तक बताया।
“इसमें एक स्त्री के जीवन की हर अवस्था से जुड़ी सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक चुनौतियों को बेबाकी से उठाया गया है।”
संचालन और विश्लेषण
कार्यक्रम का संचालन डॉ. अजीत प्रियदर्शी ने किया और उन्होंने कहा “यह किताब एक चेतावनी है उस सोच के लिए जो महिलाओं को बराबरी का अधिकार देने से रोकती है।” डॉ. रविशंकर पांडे ने सभी अतिथियों का स्वागत भाषण देकर कार्यक्रम की शुरुआत की, जो दीप प्रज्वलन और वाणी वंदना के साथ हुआ।
जिन हस्तियों ने कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई
वरिष्ठ कवि नरेश सक्सेना
जनसंदेश टाइम्स के संपादक डॉ. सुभाष राय
लमही पत्रिका के संपादक डॉ. विजय राय
कथाक्रम के संपादक शैलेन्द्र सागर
प्रसिद्ध उपन्यासकार डॉ. सुधाकर अदीब
गज़लकार डॉ. राजेन्द्र वर्मा,
डॉ. दीपा तिवारी, डॉ. रजनी गुप्त, नाइस हसन, अब्दुल वहीद सहित कई प्रबुद्ध लोग मौजूद रहे।
कार्यक्रम के अंत में लेखिका शीला पांडे ने सभी अतिथियों और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया। सभागार शुरू से अंत तक भरा रहा, और यह साहित्यिक आयोजन स्त्री चेतना और सामाजिक विमर्श के क्षेत्र में एक प्रेरणादायक उदाहरण बनकर सामने आया।
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