मनी ट्रेल का मायाजाल: आजमगढ़ में टेलीग्राम ठगी गिरोह का सरगना गिरफ्तार, कमीशन पर खरीदते थे गरीबों के बैंक खाते
Sandesh Wahak Digital Desk: साइबर अपराधों की बढ़ती घटनाओं के बीच, आजमगढ़ साइबर थाना पुलिस ने टेलीग्राम ग्रुप के माध्यम से ठगी करने वाले एक गिरोह के सदस्य और सरगना शक्ति कपाड़िया को गिरफ्तार किया है। यह अपराधी पुलिस को चकमा देने के लिए ‘मनी ट्रेल’ नामक तकनीक का इस्तेमाल करता था, जिसके तहत ठगी के पैसे को कई राज्यों के खाताधारकों के खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था।
ठगी का तरीका: मनी ट्रेल और कमीशन
गिरोह पुलिस के अनुसंधान से बचने के लिए एक जटिल नेटवर्क का प्रयोग करता था। ठगी के रुपये के लेन-देन के लिए पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, दिल्ली, बिहार और छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों के खाताधारकों का इस्तेमाल किया जाता था। पीड़ित के खाते से उड़ाई गई रकम को मिनटों के भीतर एक के बाद एक कई खाताधारकों के खातों में ट्रांसफर कर दिया जाता था।
ऑनलाइन रकम कई खातों में ट्रांसफर होने से पुलिस का अनुसंधान उस ओर उलझा रहता था। इसी बीच, अपराधी अंतिम खाते से नकद रकम निकाल लेते थे। पुलिस से बचने के लिए अपनाई जा रही इस तकनीक को ही मनी ट्रेल कहा जाता है।
यह गिरोह गरीब और मजदूर तबके के लोगों को मोटी कमीशन का लालच देकर उनके नाम पर फर्जी बैंक खाते खुलवाता था। खाताधारक को रकम के हिसाब से कमीशन मिलता था, जो कभी-कभी लाखों में होता था। बदले में ठग पासबुक, साइन्ड चेकबुक, एटीएम कार्ड, मोबाइल नंबर और यूपीआई आईडी अपने पास रख लेते थे।
कोड़ नेम से होता था लेन-देन
ठगी की रकम बैंक से निकालने और खाताधारकों को कमीशन देने के लिए विशेष कोड नेम वाली टेलीग्राम आईडी का इस्तेमाल होता था। वाइईएसएस और सिंबा नामक टेलीग्राम आईडी से जुड़े लोग बैंक से रुपये निकालकर सरगना शक्ति कपाड़िया तक पहुंचाते थे। गिरफ्तार अपराधियों ने बताया कि वे लोगों को वेबसाइट पर विज्ञापन (एड) के माध्यम से फंसाते थे। गिरोह के सदस्य मोनू, रोहित कुमार और मोहित रुपये पहुंचाने का कार्य संभालते थे।
ठिकाना और तकनीक बदलकर देते थे चकमा
पुलिस की गिरफ्त से बचने के लिए सरगना शक्ति कपाड़िया अत्यंत सावधानी बरतता था। वह हर छह माह में अपना ठिकाना बदलता रहता था और किसी स्थायी जगह न रहकर लखनऊ, गाजियाबाद या दिल्ली जैसे शहरों में होटलों और लॉज में छिपता था। वह पुलिस से बचने के लिए टेलीग्राम एप्लिकेशन का प्रयोग करता था, जिसमें मोबाइल नंबर नहीं दिखता है, जिससे ट्रेसिंग मुश्किल होती है।
शक्ति कपाड़िया बिना सिम वाले मोबाइल का प्रयोग करता था और टेलीग्राम आईडी को होटल या लॉज के वाईफाई से चलाता था।
‘इंवेस्टीगेशन में बहुत वक्त लगता है’
विवेक त्रिपाठी, एएसपी नोडल साइबर, ने इस तकनीक के बारे में कहा “इस तरीके का इस्तेमाल साइबर ठग पुलिस को चकमा देने के लिए कर रहे हैं। ऐसी ठगी के मामलों में इंवेस्टीगेशन में पुलिस को बहुत वक्त लगता है। इसका फायदा उठाकर अपराधी आसानी से ठगी के पैसे निकाल लेता है। पहले ये ठगी की रकम ई-वॉलेट में, फिर अलग-अलग खातों में ट्रांसफर करते थे, अब अपराधी यह तकनीक अपना रहे हैं। गिरफ्तार बदमाशों द्वारा भेजे गए खातों की जांच कराकर ठगी की रकम बरामद करने का प्रयास किया जा रहा है।”
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