UP News: प्रदेश के युवाओं को अब नहीं लुभा रहा माफिया का ‘भौकाल’
योगी सरकार की अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति का दिख रहा असर, अपराधियों के ग्लैमर पर लगी गहरी चोट
Sandesh Wahak Digital Desk/Sunil Kumar Mishra: उत्तर प्रदेश की आबोहवा में घुला हुआ भौकाल ही वो शब्द है जिसने युवाओं को अपराध की ओर जाने का रास्ता दिखाया। बाहुबलियों, नेताओं और माफियाओं सबका अलग-अलग तरह का भौकाल था। लंबी गाड़ियों की कतार, गाडिय़ों की खिड़की से बाहर छांकती रायफल की नालें और पैर छूने वालों की भीड़ यही ग्लैमर युवाओं में उनके करीब जाने की ललक पैदा करता था जो अपराध के रास्ते पर चलकर ही संभव था। लेकिन योगी सरकार ने पहली बार अपराधियों के सफाए के साथ उनके भौकाल पर चोट करके इस ग्लैमर को खत्म करने का अभियान चलाया।
यूपी में माफिया से नेता बनने और नेता बनकर माफिया पैदा करने का खेल दशकों से चल रहा है। इन्हीं के करीब जाने या उनके जैसा बनने की चाहत में युवा हथियार उठाकर पहले शूटर बनते हैं इसके बाद किसी क्षेत्र विशेष में दबदबा कायम कर इनके आर्थिक और राजनीतिक हितों को साधने का काम करने लगते हैं।
थाने के भीतर हुई थी राज्यमंत्री की हत्या
राजनीतिक समीकरण बिगडऩे पर अगर किसी माफिया के खिलाफ कार्रवाई होती भी थी। तो विरोधी खेमा उनके ही किसी ऐसे शागिर्द को राजनीतिक संरक्षण देकर उनकी गद्दी पर बैठा देता था। कानपुर बिकरु कांड इसी का नतीजा था। इसी ग्लैमर को देखकर किसान का बेटा विकास दुबे, पूर्व विधायक नेकचंद पाण्डेय और हरिकिशन श्रीवास्तव के करीब आया और अपराधी बन गया। भौकाल बढ़ाने के लिए राज्यमंत्री की थाने के भीतर हत्या कर दी।
बिकरु कांड में कार्रवाई के दौरान पुलिस के सामने विकास के गिरोह के ऐसे सदस्य सामने आये जो उसके भौकाल को देखकर उससे जुड़ और अपराध करने लगे। इसमें अमर दुबे, संजू दुबे, श्याम बाजपेई, जहान यादव, बऊआ सहित कई युवक शामिल थे। लेकिन पुलिस और प्रशासन ने विकास के गैंग से लेकर संपत्ति और हर उस पहलू पर एक्शन लिया जो उसके भौकाल में सुमार थे।
जेल से ऑपरेट करके थे गैंग, अब जमानत लेने को तैयार नहीं
राजधानी लखनऊ से पूरे प्रदेश को नियंत्रित करने वाले ओम प्रकाश उर्फ बबलू श्रीवास्तव और रमेश कालिया का दौर खत्म होते ही तीन भाईयों सलीम, सोहराब और रुस्तम ने इनकी जगह ले ली। इनका खौफ ऐसा था कि इन्हें सीरियल किलर नाम दे दिया गया। तिहाड़ जेल में बंद इन भाईयों के नाम से लखनऊ के व्यापारी रंगदारी देते रहे। राजनीतिक संरक्षण ऐसा था कि जेल में रहते हुए पत्नी को पार्षद बनवा दिया। इनके एक इशारे पर इनके गुर्गे किसी भी जान ले लेते। इनका भौकाल भी ऐसा था कि बड़ी संख्या में युवा सिर्फ इनके करीब जाने की चाहत में इनके इर्द-गिर्द मंडराते थे। इन्हीं में एक अकील अंसारी इनका भरोसेमंद हुआ।
इनके लिए काम करने के साथ इनके जैसा भौकाल बनाने की चाहत में उसने वर्ष 2013 में एक कॉलेज स्टूडेंट आयुष की मामूली सी बात पर हत्या कर दी। इसके बाद केस की पैरवी कर रहे आयुष के पिता श्रवण साहू की 2017 में जेल में बैठकर हत्या करवा दिया। ये वो अपराधी हैं जो पेशी पर आते थे तो पैर छूने वालों की लाइन लगती थी। लेकिन योगी सरकार में बड़े माफियाओं का हस्र देखकर अब जेल से बाहर आने में कतरा रहे हैं।
श्रीप्रकाश शुक्ला के नक्शे कदम पर विनोद ने खड़ा किया साम्राज्य
पूर्वांचल में गैंगवार के दौर में बड़ा नाम विनोद उपाध्याय का था। आतंक का पर्याय रहे श्रीप्रकाश शुक्ला के करीबी सत्यव्रत राय का दामन थाम कर विनोद बाहुबली हरिशंकर तिवारी के हाते तक पहुंचा और उनका करीबी बन गया। यहां तक पहुंचने के लिए उसने छात्र राजनीति में कदम रखा और यहीं से वो भौकाल बनाना शुरू किया जिसने उस दौर के युवाओं को उसकी ओर आकर्षित किया।
ब्राह्मणों के रॉबिनहुड कहे जाने वाले हरिशंकर तिवारी का सिर पर हाथ होने की वजह से वो बेखौफ होकर जमीनें कब्जाने, रंगदारी, अपहरण को अंजाम देता रहा। मुन्ना बजरंगी के बाद पूर्वांचल में विनोद उपाध्याय ही वो चेहरा था जिसने सबसे ज्यादा युवाओं को अपराध के दलदल में फसाया। अपराध के रास्ते इसने राजनीति में एंट्री की और बसपा के टिकट पर विधानसभा चुनाव लड़ा। ये वो टर्निंग पॉइंट था जिसने नए लडक़ों को और उसके करीब पहुंचा दिया।
पूर्वांचल के युवाओं में उसका भौकाल देखकर कैरियर के दूसरे रास्ते फीके लगने लगे। इसके गुर्गों की लंबी फेहरिस्त पुलिस के पास थी जो इसके भौकाल से प्रभावित होकर इसे अपना आदर्श मानते थे। योगी सरकार ने इसके भौकाल को मिटाने के लिए पहले इसके आर्थिक साम्राज्य पर चोट की। इसी साल जनवरी में विनोद एसटीएफ की गोली से मारा गया।
पढ़ाई करने लखनऊ आया राकेश बन गया मुन्ना का शूटर
माफियाओं का भौकाल रौब के साथ जीने की हसरत रखने वाले नौजवानों को रिझाता है। ऐसा ही नौजवान मऊ जिले के लिलारी भरौली गांव का रहने वाला राकेश पाण्डेय उर्फ हनुमान था। सेना से रिटायर्ड पिता जितने सख्त मिजाज थे राकेश उतना ही आजादी पसंद और रौबीला था। 90 के दशक में हाईस्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद पॉलीटेक्निक की पढ़ाई करने लखनऊ आया। पहली बार इतने बड़ शहर की हवा ने उसके ख्यालों को पंख दिया। एक हत्या के केस में जेल गया।
जहां उसकी मुलाकात बाहुबली अभय सिंह से हो गई। यह वो दौर था जब जवानी की दहलीज पर कदम रखने वाले युवाओं को मुन्ना बजरंगी की स्टाइल बेहद पसंद आ रही थी। दिल्ली में पुलिस की गोलियां से बच निकलने के बाद मुन्ना को नया गैंग खड़ा करने के लिए भरोसेमंद शूटर की तलाश थी।
अभय सिंह ने राकेश को मुन्ना से मिलाया। मुन्ना के साथ कई बड़ी वारदात करने के बाद मुख्तार अंसारी का हाथ राकेश के सिर पर आ गया। यहीं से पॉलीटेक्निक का वो छात्र प्रदेश का सबसे बड़ा अपराधी बन गया। उसने मुख्तार के इशारे पर विधायक कृष्णानंद राय की हत्या कर दी और 2020 में एसटीएफ की गोली से मारा गया।
बड़े माफिया पर इस तरह की कार्रवाई से आपराधिक प्रवृत्ति रखने वाले युवाओं में डर पैदा होता है। छोटे-मोटे अपराधी जो आगे चलकर बड़ी घटनाओं को अंजाम दे सकते हैं उनके कदम रुक जाते हैं। यह सब सरकार और पुलिस, प्रशासन की सख्ती पर निर्भर करता है कि प्रदेश में कैसा माहौल होना चाहिए। पंजाब आज अपराध की धुरी बना हुआ है। लॉरेंस विश्रोई जैसे माफिया पनप रहे। लडक़े हैं गलती हो जाती है जैसी सोच से अपराध को बढ़ावा मिलता है। माफिया को मिट्टी में मिला देंगे जैसे बयान और इच्छा शक्ति से भय मुक्त प्रदेश की परिकल्पना साकार होती है।
विक्रम सिंह, पूर्व डीजीपी, यूपी