UP Politics: एमवाई फैक्टर पर भारी न पड़ जाए मुस्लिम नेताओं संग सौतेला व्यवहार
अखिलेश के सामने पांच बार के बुजुर्ग सपा विधायक के साथ हुई बेअदबी ने पकड़ा तूल, पहले भी आ चुके हैं कई मामले

Sandesh Wahak Digital Desk/ Manish Srivastava: सपा की सियासी नींव जिस एमवाई (मुस्लिम और यादव) फैक्टर पर टिकी है। उसे आजमगढ़ में नए पार्टी दफ्तर के उद्घाटन के दिन ही गहरा धक्का लगा है।
पांच बार के बुजुर्ग सपा विधायक आलम बदी के साथ मंच पर पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने हुई बेअदबी से प्रदेश भर के मुस्लिम बेहद खफा हैं। इसका एहसास पार्टी के कर्णधारों को भी है। नतीजतन शीर्ष स्तर से हरी झंडी के बाद डैमेज कंट्रोल के प्रयास भी शुक्रवार से शुरू हो गये। लेकिन पूर्वांचल के आजमगढ़ को अपना आधार बनाने वाली सपा यहां के उन दिग्गज मुस्लिम नेताओं को मुलायम जैसी तवज्जो कभी नहीं दे सकी।
भरोसेमंद मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा सपा को पड़ सकती है भारी
जिन्होंने भाजपा से लडऩे में सपा के लिए न सिर्फ अपना सर्वस्व लुटा दिया बल्कि दसों विधानसभा सीटें भी पार्टी की झोली में डाल दीं। आजमगढ़ में यादव बिरादरी से जुड़े नेताओं के हावी होने से मुस्लिमों के बीच पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) को लेकर अभी से फूट पडऩी शुरू हो चुकी है। ऐसे में पूर्वांचल के दशकों पुराने पार्टी के भरोसेमंद मुस्लिम नेताओं की उपेक्षा 2027 में सपा के लिए भारी भी पड़ सकती है।
परिणाम एक बार भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ की जीत के रूप में नजर भी आ चुका है। पिछले साल अगस्त में सपा के संविधान मान स्तंभ कार्यक्रम में सांसद धर्मेंद्र यादव की उपस्थिति में गोपालपुर के विधायक नफीस अहमद को बोलने से रोकने को लेकर हंगामा हुआ था। नफीस ने सार्वजनिक रूप से कहा कि उन्हें इसलिए बोलने से रोका जा रहा है क्योंकि वह मुसलमान हैं। गुरुवार को भी नफीस को मंच पर उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिलने के आरोप लग रहे हैं। नफीस ही नहीं आजमगढ़ के दिग्गज नेता शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली के साथ भी पूर्व में सपा ने नाइंसाफी करने में कसर बाकी नहीं छोड़ी।
वरना जमाली की आमद पार्टी में काफी पहले हो जाती। दरअसल गुड्डू जमाली 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले ही सपा में शामिल होना चाहते थे। उन्होंने पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव से मुलाकात भी की। सारी बातें होने के बावजूद उन्हें मुबारकपुर सीट से टिकट नहीं दिया गया। जबकि जमाली साल 2012 और 2017 में दो बार मुबारकपुर सीट से विधायक चुने गए थे। मुबारकपुर से सपा नेता अखिलेश यादव (पार्टी अध्यक्ष नहीं) को टिकट दिया गया। जमाली को ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम से ताल ठोंकनी पड़ी।
सपा को नहीं मिला था मुस्लिम वोटर्स का पूरा समर्थन
वरिष्ठ मुस्लिम नेता को दरकिनार करने का खामियाजा सपा को आजमगढ़ सीट पर हुए लोकसभा उपचुनाव में बड़े झटके के रूप में उठाना पड़ा। सपा प्रत्याशी धर्मेंद्र यादव को भाजपा के दिनेश लाल निरहुआ ने आठ हजार वोटों से नजदीकी शिकस्त देकर भारी उलटफेर के जरिये पार्टी की खूब फजीहत कराई। दरअसल सपा के पास आजमगढ़ की सभी दस विधानसभा सीटें तो थीं। लेकिन मुस्लिमों का पूरा समर्थन नहीं था। तभी सपा की हार की असली वजह तीसरे स्थान पर रहे 266210 वोट पाए बसपा के कद्दावर प्रत्याशी जमाली ही थे। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव इस सियासी गणित को तत्काल समझ गए और उन्होंने जमाली को पार्टी में शामिल कराकर झट एमएलसी बना दिया।
जिससे मुस्लिमों के बीच सकारात्मक सन्देश जाने के साथ ही सपा के धर्मेंद्र यादव को 2024 लोकसभा चुनाव में आजमगढ़ सीट से लड़ाने में कोई बाधा न आये। मुस्लिमों के समर्थन ने लोकसभा चुनाव में एक बार फिर सपा का परचम लहरा दिया। इसके बावजूद उन्हें आजतक उचित सियासी नुमाइंदगी नसीब नहीं हो सकी। जिसका नतीजा एक दिन पहले गांधीवादी शख्सियत और यूपी के सबसे ईमानदार बुजुर्ग विधायक आलम बदी के साथ मंच पर बदसलूकी के रूप में नजर भी आया।
आजमगढ़ में सपा के दिग्गज नेताओं में शुमार थे वसीम अहमद
इसी तरह सपा के पुराने सिपहसालार और पूर्व मंत्री वसीम अहमद की मौत के बाद उनकी पत्नी शमा को टिकट नहीं दिया गया। उस दौरान वो फूट-फूट कर रोती दिखीं। हालांकि गोपालपुर सीट पर सपा ने नफीस को आजमाया, लेकिन दिवंगत वसीम की पत्नी को कहीं भी ऐडजस्ट करने के प्रति सपा ने कोई रुचि नहीं दिखाई। जबकि वसीम अहमद आजमगढ़ में सपा के दिग्गज नेताओं में शुमार थे।
समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता श्री आज़म खान जी की हालत एकदम श्री आलम बदी जी जैसी हो गई है नेता लोग धकिया के पीछे कर दे रहे हैं…
एक बुजुर्ग मुस्लिम विधायक श्री आलम बदी जी का हालत और हालात देखिए!और सोचिए.. समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के सामने एक विधायक को किहुनिया- धकिया दिया तो… pic.twitter.com/kH8qfZLSkI— Arvind Rajbhar – डॉ. अरविंद राजभर (@arvindrajbhar07) July 4, 2025
अपनों के साथ सियासी दल भी सपा पर कस रहे तंज: कभी सपा की साथी रही सुभासपा के नेता अरविन्द राजभर ने एक्स पर पोस्ट कर लिखा कि समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता आजम खान की हालत एकदम आलम बदी जैसी हो गई है। नेता लोग धकिया के पीछे कर दे रहे हैं। एक बुजुर्ग मुस्लिम विधायक आलम बदी हालत और हालात देखिए और सोचिए समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष के सामने एक विधायक को धकिया दिया तो आम मुसलमान की क्या दशा होगी? यह है असली पीडीए। समाजवादी पार्टी की जब-जब सरकार बनी है तब-तब कुछ जातियों को छोड़ कर समस्त पिछड़ा अतिपिछड़ा सर्वाधिक पिछड़ा और वंचित वर्ग को ऐसे ही लतिया और धकिया दिया जाता है।
आलम बदी की सफाई : मुझे किसी ने धक्का नहीं दिया, घुटन होने से मैं पीछे चला गया
सपा के बुजुर्ग विधायक आलम बदी ने एक दिन पहले पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव के सामने मंच से धकियाये जाने के आरोपों को शुक्रवार को पूरी तरह से नकार दिया। उन्होंने कहा कि मुझे घुटन हो रही थी। इसलिए मैं पीछे चला गया। किसी ने धक्का नहीं दिया। हालांकि इस वाकये के बाद आजमगढ़ ही नहीं प्रदेश भर के मुस्लिम समुदाय में नाराजगी बढ़ी है। जिसका इजहार सोशल मीडिया पर किया गया। वहीं सपा नेताओं ने बुजुर्ग विधायक की सफाई का वीडियो शेयर करके डैमेज कंट्रोल के प्रयास किये। आजमगढ़ के मुस्लिम समुदाय के बीच सांसद धर्मेंद्र यादव और विधायक संग्राम यादव के रवैये को लेकर आक्रोश है।
यूपी में सभी दलों को मुस्लिम वोट हर कीमत पर चाहिए, फिर सियासी नुमाइंदगी देने से परहेज क्यों?
यूपी में बीस फीसदी मुस्लिम वोटबैंक पर सभी सियासी दलों की निगाहें हैं। तभी सपा जहां आजमगढ़ को सियासत का नया केंद्र बना रही है। वहीं कांग्रेस भी सहारनपुर से सांसद इमरान मसूद को आगे रखे है। भाजपा भी अल्पसंख्यक मोर्चे के जरिये मुस्लिमों के लिए किये मोदी-योगी सरकार के काम गिना रही है। बसपा भी इसी नक्शे कदम पर है। इसके इतर यूपी में मुस्लिमों को उचित सियासी नुमाइंदगी देने को कोई दल तैयार नहीं है। विधानसभा से लेकर लोकसभा तक टिकट बंटवारे में इसकी झलक नजर आ जाती है। जिसको लेकर मुस्लिमों में गहरी नाराजगी भी बढ़ रही है।
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