मुरादाबाद दंगा: चार दशक बाद दंगे का सच आएगा सामने, CM Yogi ने उठाया ये कदम

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

Sandesh Wahak Digital Desk: मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ (CM Yogi) की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मुरादाबाद दंगे की एक सदस्यीय न्यायिक जांच की रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। अब 43 साल पहले में ईद की नमाज के बाद भड़के दंगे का सच अब सामने आएगा। आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक मुरादाबाद के डॉ. शमीम अहमद खान इस दंगे का सूत्रधार था। शमीम ने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज को फंसाने के लिए 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा कराया था। इसका मकसद राजनीतिक लाभ हासिल करना था।
हैरानी की बात यह है कि 1980 से अब तक प्रदेश में 15 मुख्यमंत्री बने, लेकिन कोई भी इस रिपोर्ट को सदन के पटल पर रखने की हिम्मत नहीं जुटा सका।
लेकिन भाजपा की योगी आदित्यनाथ सरकार (CM Yogi Government) अब इस रिपोर्ट को सदन में रखेगी, जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ सकता है। योगी सरकार (CM Yogi) ने बताया कि लगभग 40 साल पहले शासन में रिपोर्ट प्रस्तुत होने के बाद भी पूर्ववर्ती सरकारों ने रिपोर्ट को कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति नहीं दी।

तत्कालीन मुख्यमंत्री ने गठित किया था आयोग

बता दें कि तत्कालीन मुख्यमंत्री वीपी सिंह ने दंगे की जांच के लिए एक सदस्यीय न्यायिक जांच आयोग का गठन किया था। आयोग की रिपोर्ट आने के 43 साल बीतने के बाद भी किसी भी आरोपी पर कार्रवाई नहीं की जा सकी। उस दौरान दंगे में मरने वाले लोगों की संख्या 250 से अधिक बताई गई, हालांकि इसकी आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई थी। दरअसल दो समुदायों के बीच हिंसा भड़कने के बाद पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी,जिससे कई लोग मारे गए। इसके बाद मुरादाबाद में करीब एक माह तक कर्फ्यू लगा रहा।
इस आयोग की रिपोर्ट को 40 साल बाद शुक्रवार को कैबिनेट में प्रस्तुत किया गया। कैबिनेट से अनुमोदन के बाद अब रिपोर्ट विधानमंडल में पेश की जाएगी।

दंगे में मारे गए थे 83 लोग

आपको बता दें, मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के समय पथराव और हंगामा हुआ था। इसके बाद सांप्रदायिक हिंसा भड़कने से 83 लोग मारे गए थे तो वहीं 112 लोग घायल हुए थे। इस मामले की जांच के लिए गठित आयोग ने अपनी रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी थी। सूत्रों के मुताबिक जांच में सामने आया था कि मुस्लिम लीग के डॉ. शमीम अहमद खां और उनके समर्थकों ने वाल्मीकि समाज, सिख और पंजाबी समाज के लोगों को फंसाने के लिए अपने समर्थकों के साथ घटना को अंजाम दिया था।

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