डॉक्टर्स डे विशेष रिपोर्ट: मोबाइल फोन ,वरदान या सेहत का दुश्मन? जानिए विशेषज्ञों की राय

Sandesh Wahak Digital Desk: आज देशभर में राष्ट्रीय डॉक्टर दिवस मनाया जा रहा है  वो दिन जब हम उन चिकित्सकों को धन्यवाद देते हैं जो हमारी सेहत की रक्षा के लिए दिन-रात जुटे रहते हैं। लेकिन इस मौके पर एक सवाल हम सबके ज़हन में उठ रहा है — क्या मोबाइल फोन हमारी सेहत को चुपचाप नुकसान पहुँचा रहा है? हर उम्र का इंसान आज मोबाइल में डूबा है  पढ़ाई हो, काम हो या मनोरंजन, मोबाइल एक ज़रूरत बन चुका है। लेकिन इसके दुष्परिणाम अब धीरे-धीरे सामने आने लगे हैं। डॉक्टरों के मुताबिक, मोबाइल का ज्यादा इस्तेमाल हमारे मस्तिष्क, आंखों और शरीर पर गंभीर असर डाल रहा है।

मस्तिष्क पर असर: ध्यान भंग और मानसिक थकावट

  • लगातार स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रहना मस्तिष्क को थका देता है।

  • इससे याददाश्त कमजोर होती है, निर्णय लेने की क्षमता घटती है और युवा वर्ग में तनाव और बेचैनी बढ़ती है।

  • नींद का चक्र बिगड़ने के कारण डिजिटल इन्सोम्निया एक नई समस्या बन चुकी है।

आंखों पर असर: स्क्रीन की रोशनी, नजर की कीमत

  • मोबाइल से निकलने वाली नीली रोशनी (Blue Light) आंखों को सूखा, थका और कमजोर कर रही है।

  • बच्चों और किशोरों में जल्दी चश्मा लगना आम हो गया है।

  • लगातार स्क्रीन देखने से धुंधलापन, जलन और सरदर्द जैसी शिकायतें बढ़ी हैं।

शरीर और मुख पर असर: झुकी गर्दन, तनावभरा चेहरा

  • मोबाइल देखते समय झुककर बैठना पोश्चर को बिगाड़ देता है, जिससे गर्दन, पीठ और कंधों में दर्द हो सकता है।

  • जबड़े की मांसपेशियों पर दबाव पड़ने से जॉ पेन, यानी जबड़े में दर्द की शिकायतें सामने आ रही हैं।

  • लंबे समय तक मोबाइल इस्तेमाल करने से चेहरे की प्राकृतिक मुस्कान और भाव भी कम होते जा रहे हैं।

मोबाइल और नींद: क्या है नुकसान? 

नीली रोशनी (Blue Light) से मेलाटोनिन कम होता है

  • मोबाइल, लैपटॉप और टीवी जैसे स्क्रीन से नीली रोशनी निकलती है।

  • यह रोशनी दिमाग को “जगने” का संकेत देती है और मेलाटोनिन नामक नींद लाने वाला हार्मोन कम बनता है।

  • नतीजा — नींद देर से आती है, और नींद की गहराई कम हो जाती है।

दिमाग रहता है ‘Active Mode’ में

  • सोशल मीडिया, वीडियो, गेम, या चैटिंग से दिमाग लगातार उत्तेजित रहता है।

  • इससे दिमाग को “शांत” होने में देर लगती है।

  • सोने से ठीक पहले मोबाइल चलाना मतलब, दिमाग को आराम मिलने से रोकना।

अस्थिर और अधूरी नींद (Interrupted Sleep)

  • रात को आने वाले नोटिफिकेशन, कॉल, मैसेज नींद के बीच में बाधा बनते हैं।

  • बार-बार नींद खुलने से स्नूज़-स्नूज़ नींद होती है — जिससे शरीर और दिमाग पूरी तरह आराम नहीं कर पाते।

लंबे समय में क्या असर होता है?

  • चिड़चिड़ापन, थकान, चिंता, भूलने की आदत, और एकाग्रता में कमी

  • बच्चों में बुद्धि विकास (cognitive growth) पर असर

  • युवाओं में डिप्रेशन और मोटापा

  • वयस्कों में हार्मोनल असंतुलन, ब्लड प्रेशर, और मेटाबोलिक समस्याएं

समाधान: डॉक्टरों की नींद के लिए सलाह

सलाह विवरण
“डिजिटल सनसेट” सोने से 1 घंटा पहले मोबाइल बंद करें
Blue Light Filter मोबाइल में “नाइट मोड” या “ब्लू लाइट फिल्टर” ऑन करें
डिजिटल फ्री बेडरूम सोते समय मोबाइल को बेड से दूर रखें
फिक्स्ड स्लीप टाइम रोज़ाना एक ही समय पर सोने और उठने की आदत डालें
“Do Not Disturb” मोड रात को नोटिफिकेशन बंद कर दें

 

क्या मोबाइल हमारे लिए फायदेमंद है?

ज़रूर सही उपयोग किया जाए तो मोबाइल हमारे लिए वरदान है। लेकिन यदि यह जीवन पर हावी हो जाए, तो यह सेहत के लिए खतरा बन सकता है।

उपयोग  लाभ  नुकसान
शिक्षा ई-लर्निंग, वीडियो क्लास आंखों पर दबाव, कम एकाग्रता
कार्य संचार, लचीलापन थकावट, तनाव
मनोरंजन रील्स, गेम, म्यूज़िक नींद में बाधा, डिप्रेशन

डॉक्टरों की सलाह: सेहत के लिए अपनाएं ये 5 आदतें

स्क्रीन टाइम सीमित करें – हर दिन अधिकतम 2–3 घंटे।
  1. सोने से पहले 1 घंटा मोबाइल से दूरी बनाएं।

  2. हर 30 मिनट पर 2 मिनट आंखें बंद करके आराम करें।

  3. बच्चों के लिए मोबाइल का समय तय करें।

  4. सप्ताह में कम से कम एक दिन नो-स्क्रीन डे रखें।

 डॉक्टर्स डे पर एक छोटा संकल्प

आज डॉक्टर डे है — आइए, हम न केवल डॉक्टरों का आभार जताएं, बल्कि उनकी सलाह को अपनाकर अपने शरीर, दिमाग और आंखों को मोबाइल के असर से बचाएं। मोबाइल ज़रूरी है, लेकिन सेहत उससे कहीं ज़्यादा जरूरी है।

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