संपादकीय: स्वास्थ्य सेवाओं में Corruption का घुन

यूपी सरकार के दावों के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं में फैले भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लग पा रही है।

Sandesh Wahak Digital Desk: यूपी सरकार के दावों के बावजूद स्वास्थ्य सेवाओं में फैले भ्रष्टाचार (Corruption) पर लगाम नहीं लग पा रही है। सोनभद्र के जिला संयुक्त चिकित्सालय में दो चिकित्सकों द्वारा पैसा लेकर फर्जी मेडिकल बनाने का मामला इसकी बस एक बानगी भर है। हालत यह है कि सरकारी अस्पतालों में दवाओं से लेकर मेडिकल उपकरणों की खरीद तक में कमीशनखोरी बदस्तूर जारी है। अस्पतालों में मरीजों के लिए आई दवाएं तक बाजार में बेची जा रही हैं। चिकित्सक न केवल अस्पताल में उपलब्ध दवाओं के बजाए पर्चे में बाहर की दवाएं लिखते हैं बल्कि प्राइवेट प्रैक्टिस भी करते हैं। नामचीन अस्पतालों में दलालों की सक्रियता से साफ है कि पानी सिर के ऊपर जा चुका है।

Corruption
सोनभद्र का जिला संयुक्त चिकित्सालय

सवाल यह है कि…

  • भ्रष्टाचार के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति सरकारी अस्पतालों में बेअसर क्यों है?
  • दवाओं और मेडिकल उपकरणों की खरीद में कमीशनखोरी, बाजार में अस्पताल की दवाओं की बिक्री आदि पर नियंत्रण के लिए कोई पारदर्शी व्यवस्था आज तक क्यों नहीं बनायी गई?
  • प्राइवेट प्रैक्टिस पर अंकुश क्यों नहीं लग सका?
  • क्या ऐसे ही मरीजों को बेहतर चिकित्सा सेवाएं उपलब्ध कराने का वादा पूरा किया जा सकता है?
  • क्या कुछ लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने भर से पूरे प्रदेश का चिकित्सा तंत्र सुधर जाएगा?

पर्दे के पीछे से की जा रहीं हैं गड़बडिय़ां

भले ही सरकार ने पैसा लेकर फर्जी प्रमाणपत्र (fake certificate) बनाने वाले चिकित्सकों के खिलाफ कार्रवाई की हो, चिकित्सा तंत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार (Corruption) पर अंकुश लगाने के लिए यह काफी नहीं है। अधिकांश अस्पतालों के प्रबंध तंत्र की हालत बेहद खराब है। सरकार के बनाए नियम-कानूनों का पालन नहीं किया जा रहा है। पर्दे के पीछे से तमाम घोटाले और गड़बडिय़ां की जा रही हैं।

प्रतीकात्मक चित्र

 

अधिकांश नामचीन अस्पतालों में दलाल सक्रिय हैं और बेहतर इलाज उपलब्ध कराने का झांसा देकर वे मरीजों को निजी अस्पतालों में भर्ती कराकर मोटी रकम ऐंठते हैं। इसके लिए अस्पताल में मरीजों की संख्या और चिकित्सकों का लापरवाह रवैया बहुत हद तक जिम्मेदार है। कई बार चपरासी से लेकर डॉक्टरों की मिलीभगत (collusion of doctors) से भी गंभीर मरीजों को निजी अस्पतालों में शिफ्ट करने का खेल चलता है।

व्यवस्था में ही खामियां कहाँ से हो कार्रवाई

वहीं, सरकार की हिदायत के बावजूद कई चिकित्सक बाहर की दवाएं पर्चे पर लिख रहे हैं। लिहाजा मरीज को देने के लिए आई करोड़ों की दवाएं एक्सपायर डेट हो जाती हैं। ऐसी कुछ घटनाएं सामने आ चुकी हैं बावजूद इसके अस्पताल प्रशासन (hospital administration) दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई शायद ही कभी करता नजर आता है। यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि व्यवस्था में तमाम खामियां हैं।

प्रतीकात्मक चित्र

साफ है हालात बद से बदतर होते जा रहे हैं। यदि सरकार आम जनता को गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा सेवाएं (quality medical services) उपलब्ध कराना चाहती है तो उसे इस पूरी व्यवस्था में आमूल बदलाव करना होगा। पारदर्शी व्यवस्था के साथ निगरानी तंत्र को मजबूत करना होगा। इसके अलावा उन कमियों को दूर करना होगा जिसके कारण अस्पतालों में भ्रष्टाचार (Corruption in Hospitals) का जाल फैल गया है।

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