संपादक की कलम से: जनशिकायतें और लचर तंत्र
Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश में सरकार के आदेशों और दावों के बावजूद जनशिकायतों का हल नहीं हो पा रहा है। लापरवाही का आलम यह है कि यहां प्रशासनिक तंत्र कई बार जनशिकायतों के निस्तारण की गलत रिपोर्ट वेबसाइट पर डाउनलोड कर देता है। यही वजह है कि एक बार फिर सीएम योगी ने अधिकारियों को कड़ा संदेश दिया है और साफ कर दिया है कि गलत रिपोर्ट पेश किए जाने पर संबंधित अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जाएगी।
सवाल यह है कि :
- क्या सरकार के आदेशों का सरकारी तंत्र और संबंधित अधिकारियों पर कोई असर पड़ेगा?
- क्या समस्या के कागजी निस्तारण पर रोक लग सकेगी?
- क्या नौकरशाही पर सरकार का पूरी तरह नियंत्रण नहीं है?
- क्यों समस्याओं के हल के लिए लोगों को जनता दरबार के चक्कर लगाने पड़ते हैं?
- क्यों कई बार पीडि़त विधानसभा के सामने आत्मदाह करने पहुंच जाते हैं?
- नौकरशाही लोकसेवक का अपना धर्म क्यों नहीं निभा रही है?
- क्या भ्रष्टाचार ने पूरी तंत्र को पूरी तरह खोखला कर दिया है?
- आखिर सीएम को बार-बार जनता की समस्याओं को निश्चित समय पर निस्तारण का आदेश क्यों देना पड़ रहा है?
भाजपा सरकार जनसमस्याओं के निस्तारण को लेकर गंभीर
प्रदेश की भाजपा सरकार जनसमस्याओं के निस्तारण को लेकर गंभीर है बावजूद इसके हालात में सुधार नहीं हो रहे हैं। खुद सीएम योगी जनता दरबार में लोगों की समस्याएं सुनते हैं और उसके निस्तारण के निर्देश संबंधित अधिकारियों को दे रहे हैं। पिछले साढ़े सात वर्षों में मुख्यमंत्री अनगिनत बार आदेश दे चुके हैं कि जनशिकायतों को निश्चित समय अवधि में निस्तारण किया जाए। शिकायतों के निस्तारण की सूचना सरकारी वेबसाइट पर देने की प्रक्रिया भी अपनाई गई लेकिन इसका भी कोई असर नहीं दिखा।
सख्ती का असर यह जरूर हुआ कि कई बार वेबसाइट पर समस्याओं के समाधान की गलत रिपोर्ट पेश कर दी जाती है। इसके अलावा वेबसाइट को भी अद्यतन करने में हीलाहवाली की जाती है। सीएम के इस आदेश के बावजूद कि यदि संबंधित जिले के लोग शिकायतों को लेकर लखनऊ के जनता दरबार पहुंचेंगे तो वहां के जिम्मेदार अधिकारियों और पुलिसकर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी लेकिन नौकरशाही ने इस आदेश को भी धता बता दिया है।
आदेश का पालन न करने वाले कितने अफसरों के खिलाफ सरकार ने क्या कार्रवाई की?
इस बात की जानकारी आज तक नहीं हो सकी है कि आदेश का पालन न करने वाले कितने अफसरों के खिलाफ सरकार ने क्या कार्रवाई की। हाल यह है कि पीड़ितों को न्याय नहीं मिल पा रहा है न ही उनकी सुनवाई की जाती है।
इसके कारण जनसुनवाई के लिए बनाए गए विभिन्न माध्यम निरर्थक साबित हो रहे हैं। कई बार पीड़ित इतना विक्षुब्ध हो जाता है कि अपनी बात सरकार तक पहुंचाने के लिए विधानसभा के सामने आत्मदाह कर लेता है या उसका प्रयास करता है। साफ है यदि सरकार व्यवस्था को जनोन्मुखी बनाना चाहती है तो उसे नौकरशाही को जवाबदेह बनाने के साथ कठोर कार्रवाई भी करनी होगी।
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