चार दशक तक मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट दबाये रहीं पूर्ववर्ती सरकारें, लेकिन क्यों?

नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है... प्रख्यात शायर राहत इंदौरी की इन पंक्तियों में सियासत की असल तस्वीर झलकती है।

Sandesh Wahak Digital Desk: नए किरदार आते जा रहे हैं, मगर नाटक पुराना चल रहा है… प्रख्यात शायर राहत इंदौरी की इन पंक्तियों में सियासत की असल तस्वीर झलकती है। तभी चार दशक पहले जिन दंगों की भेंट सैकड़ों लोग चढ़े, उनकी मौत के जिम्मेदारों का सच उत्तर प्रदेश की सत्ता पर विराजमान किसी भी दल की सरकार ने सामने नहीं आने दिया। इससे साबित होता है कि आम आदमी की जिंदगी से अधिक राजनीति में सिर्फ वोट बैंक के मायने ही रह गए हैं। नोएडा जाने से लेकर तमाम अन्य मिथक तोडऩे वाले योगी आदित्यनाथ प्रदेश के 16 वें मुख्यमंत्री हैं। जिनकी सरकार ने शुक्रवार को कैबिनेट बैठक के दौरान मुरादाबाद दंगों की जांच रिपोर्ट को स्वीकार किया।

मुरादाबाद दंगा: चार दशक बाद दंगे का सच आएगा सामने, CM Yogi ने उठाया ये कदम

दरअसल, मुरादाबाद में 13 अगस्त 1980 को ईद की नमाज के दौरान पथराव और हंगामा के साथ एक ऐसे दंगे ने विकराल रूप लिया। जिसमें अपुष्ट रूप से तकरीबन 300 लोग मारे गए थे। हालांकि मौत का आंकड़ा 85 के आसपास बताया गया था। तत्कालीन सीएम वीपी सिंह ने हाईकोर्ट के जज एमपी सक्सेना की अध्यक्षता में दंगे की जांच के लिए न्यायिक आयोग का गठन किया था। आयोग ने रिपोर्ट 20 नवंबर 1983 को शासन को सौंपी। एक भी राजनीतिक दल इस आयोग की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने की हिम्मत इसलिए नहीं जुटा सका क्योंकि उस तबके के वोटबैंक के छिटकने का खतरा था, जिसकी बुनियाद पर यूपी में खूब सियासत होती है।

सैकड़ों परिवारों ने झेला था इस बुरे समय का दंश

योगी कैबिनेट की मंजूरी के बाद अब 40 साल पहले सौंपी रिपोर्ट को सदन में तब प्रस्तुत किया जाएगा, जब दंगों के आरोपी खुद मौत के आगोश में जा चुके हैं। उन दंगों की कसक और अपनों को खोने का दर्द आज भी मुरादाबाद के सैकड़ों परिवारों के चेहरों पर है।

जांच रिपोर्ट अब सदन के पटल पर रखी जायेगी- वित्त मंत्री

वित्त मंत्री सुरेश खन्ना के मुताबिक आयोग की गोपनीय रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है। रिपोर्ट सदन में रखी जायेगी। जिसके बाद दंगे का पूरा सच सामने आ सकता है। खन्ना ने कहा कि 40 साल तक रिपोर्ट को पूर्ववर्ती सरकारों ने कैबिनेट एवं सदन के पटल पर रखने की अनुमति कभी नहीं दी।

सवाल तो भाजपा के मुख्यमंत्रियों पर भी है

वोटबैंक की चाहत ने भले कांग्रेस, सपा और बसपा की सरकारों को जांच रिपोर्ट सामने लाने की हिम्मत नहीं दी। लेकिन 1991 व 1997 में सत्तासीन कल्याण सिंह, 1999 में राम प्रकाश गुप्ता और 2000 में राजनाथ सिंह जैसे भाजपा के मुख्यमंत्रियों ने भी दंगों की जांच रिपोर्ट को ठन्डे बस्ते से बाहर नहीं निकाला। आखिर इनकी क्या मजबूरी थी। हालांकि सीएम योगी ने नजीर पेश की।

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