11 सीनियर अफसरों को पछाड़कर राजीव कृष्ण बने यूपी के नए डीजीपी, जानिए इनके बारे में

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश को अब नया पुलिस प्रमुख मिल गया है। लंबे मंथन और अटकलों के बाद आखिरकार राज्य सरकार ने वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी राजीव कृष्ण को कार्यवाहक डीजीपी नियुक्त कर दिया है। वे वर्तमान में पुलिस भर्ती बोर्ड के अध्यक्ष और डीजी इंटेलिजेंस के पद पर कार्यरत हैं। पूर्व डीजीपी प्रशांत कुमार के सेवानिवृत्त होने के बाद यह जिम्मेदारी अब राजीव कृष्ण को सौंपी गई है।

राजीव कृष्ण 1991 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं और मूल रूप से गौतमबुद्धनगर (नोएडा) से ताल्लुक रखते हैं। उनका पुलिस सेवा में तीन दशकों से भी अधिक का अनुभव है। उन्हें न सिर्फ एक अनुशासित और साहसी अधिकारी माना जाता है, बल्कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के भी बेहद भरोसेमंद अफसरों में गिने जाते हैं।

पेपर लीक जैसे संवेदनशील मामलों में जब सरकार को सख्त निर्णय लेने की जरूरत थी, तब मुख्यमंत्री ने भर्ती प्रक्रिया को सुधारने की जिम्मेदारी राजीव कृष्ण को दी, जिसे उन्होंने बखूबी निभाया। इसके चलते उन्हें ‘सिपाही भर्ती का हीरो’ तक कहा जाने लगा।

26 जून 1969 को जन्मे राजीव कृष्ण ने IIT रुड़की से इलेक्ट्रॉनिक्स एंड कम्युनिकेशन इंजीनियरिंग में स्नातक किया। लेकिन उनका सपना कुछ और था। उन्होंने UPSC की तैयारी की और वर्ष 1991 में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) में चयनित हुए।

उनकी पहली नियुक्ति 15 सितंबर 1991 को हुई थी। इसके बाद उन्होंने बरेली, कानपुर, अलीगढ़, इटावा, मथुरा, बुलंदशहर, आगरा, लखनऊ जैसे तमाम जिलों में बतौर पुलिस कप्तान काम किया। वह लखनऊ के डीआईजी, मेरठ रेंज के आईजी और बाद में एडीजी लखनऊ जोन जैसे अहम पदों पर भी रह चुके हैं।

आतंकवाद और सीमा सुरक्षा में भी योगदान

राजीव कृष्ण सिर्फ राज्य स्तर पर ही नहीं, राष्ट्रीय सुरक्षा के मोर्चे पर भी अपनी छाप छोड़ चुके हैं। वे बीएसएफ में आईजी ऑपरेशंस रह चुके हैं और इंडो-पाक व इंडो-बांग्लादेश बॉर्डर पर तैनाती के दौरान उन्होंने सेंसर बेस्ड बॉर्डर मैनेजमेंट सिस्टम लागू किया। इसके अलावा एंटी टेररिस्ट स्क्वॉड (ATS) की शुरुआत भी उनके नेतृत्व में हुई थी। उनके साहसिक कार्यों के लिए उन्हें दो बार राष्ट्रपति पुलिस वीरता पदक भी मिल चुका है।

कार्यवाहक डीजीपी के रूप में नई जिम्मेदारी

फिलहाल राजीव कृष्ण को कार्यवाहक डीजीपी बनाया गया है क्योंकि यूपी कैडर सूची में उनका स्थान 12वां है, और लोक सेवा आयोग से स्थायी डीजीपी की नियुक्ति के लिए उन्हें कुछ समय इंतजार करना होगा। मार्च 2025 तक कई वरिष्ठ अधिकारी रिटायर होंगे, जिसके बाद उनके स्थायी डीजीपी बनने की संभावना है।

पर्सनल लाइफ भी चर्चा में

राजीव कृष्ण की पत्नी मीनाक्षी सिंह एक वरिष्ठ आईआरएस अधिकारी हैं और लखनऊ में आयकर विभाग में पदस्थ हैं। दोनों को लोग एक “पावर कपल” के रूप में जानते हैं। राजीव की सादगी और कड़ी मेहनत ने हमेशा उन्हें जनता और शासन दोनों का प्रिय बनाए रखा है।

क्यों खास है यह नियुक्ति?

राजीव कृष्ण को डीजीपी बनाकर सरकार ने 11 वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों को सुपरसीड किया है। यह निर्णय खुद में एक साहसिक और रणनीतिक कदम माना जा रहा है, जो बताता है कि शासन को उन पर कितना भरोसा है। उनके पास अभी चार साल एक महीने की सेवा शेष है, यानी जून 2029 तक वे उत्तर प्रदेश पुलिस का नेतृत्व कर सकते हैं।

एक नई शुरुआत, बड़ी उम्मीदें

अब जब प्रशांत कुमार के रिटायरमेंट के बाद राजीव कृष्ण को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है, तो पूरे प्रदेश की निगाहें उन पर हैं। पुलिसिंग के क्षेत्र में उनका अनुभव, स्पष्ट सोच और निर्णायक कार्यशैली यूपी पुलिस को नई दिशा देने में सहायक साबित हो सकती है।

राजीव कृष्ण उन तमाम युवाओं के लिए प्रेरणा हैं जो आईपीएस बनने का सपना देखते हैं। उनके सफर की यही कहानी बताती है कि जुनून, ईमानदारी और मेहनत से कोई भी मुकाम पाया जा सकता है।

वो 3 अफसर जो DGP के लिए मजबूत दावेदार थे

तिलोत्मा वर्मा: यूपी कैडर की अफसर हैं, लेकिन मूल कैडर से ज्यादा समय उन्होंने केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर बिताया है। उन्हें सीबीआई में 5 साल और वाइल्डलाइफ क्राइम कंट्रोल ब्यूरो में 8 साल का अनुभव है। उनकी आखिरी फील्ड पोस्टिंग 2000 में एसपी सुल्तानपुर के पद पर थी। यानी वे पिछले 25 साल से फील्ड से दूर रही हैं। इस वजह से वह रेस में पिछड़ गईं।

बीके मौर्य: 1990 बैच के आईपीएस अधिकारी हैं। वे मौजूदा समय में डीजी होमगार्ड के पद पर तैनात हैं। इसी साल जुलाई में रिटायर हो रहे हैं। इसीलिए उम्मीद की जा रही थी कि राजकुमार विश्वकर्मा की तर्ज पर उन्हें दो महीने का DGP कार्यकाल दिया जा सकता था।

दलजीत चौधरी: 1990 बैच के IPS अधिकारी हैं। इस समय BSF में DG पद पर तैनात हैं। वे अमित शाह के करीबी अफसरों में गिने जाते हैं। ऐसे में उन्हें यूपी DGP के लिए प्रबल दावेदार माना जा रहा था।

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