संपादक की कलम से: मर्यादा लांघते नेता

Sandesh Wahak Digital Desk: भारत-पाकिस्तान में हुई जंग के बीच जब देश भर में सेना के शौर्य की प्रशंसा हो रही है तब कुछ दलों के नेता यहां भी धर्म और जाति की राजनीति करने से बाज नहीं आ रहे हैं। वे अपने वोट बैंक को खुश करने के लिए दो महिला व एक पुरूष सैन्य अधिकारी के धर्म और जाति का जिक्र कर अपनी सियासी रोटियां सेंकने में जुट गए हैं।
यही नहीं ये नेता अपने सियासत के लिए सैन्य अधिकारियों के लिए भाषा की मर्यादा को भी तार-तार कर रहे हैं। मध्य प्रदेश में भाजपा सरकार के मंत्री विजय शाह ने कर्नल सोफिया कुरैशी को लेकर अमर्यादित टिप्पणी की तो सपा सांसद राम गोपाल यादव ने विंग कमांडर व्योमिका सिंह पर जातिसूचक बयान दिया। वे एयर मार्शल भारती की जाति का जिक्र करने से नहीं चूके। मध्य प्रदेश के डिप्टी सीएम जगदीश देवड़ा भी सेना का अपमान करने से नहीं चूके।
सवाल यह है कि :-
- सैन्य अधिकारियों और सेना पर विवादित टिप्पणी करने के पीछे भाजपा या सपा नेताओं की मंशा क्या है?
- जाति व धर्म के नाम पर सियासत की दुकान चलाने वाले इन नेताओं के खिलाफ क्या संबंधित पार्टियां कार्रवाई करेंगी?
- जातिवाद को खत्म करने की बात करने वाले दल आखिर चुनाव जीतने के लिए जाति का सहारा क्यों लेने लगते हैं?
- क्या समाज को बांटने की कोशिश करने वाले अब सेना में भी इस जहर को फैलाने की कोशिश कर रहे हैं?
- क्या केंद्र और राज्य सरकारें ऐसे बयानवीरों के खिलाफ कोई ठोस कार्रवाई करेगी?
स्वतंत्रता के बाद से ही इस देश में जाति और धर्म की राजनीति होती रही है जो आज अपने सबसे खतरनाक स्थिति में पहुंच चुकी है। इस स्थिति के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार वे क्षेत्रीय दल रहे हैं जो जाति के नाम पर उभरे और इसके सहारे सत्ता के गलियारे तक पहुंचे। इसका परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस और भाजपा जैसे दल भी इसका खुलकर इस्तेमाल कर रहे हैं। भाजपा हिंदुत्ववाद के नाम पर आगे बढ़ी तो कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता की आड़ में तुष्टिकरण की नीति का दामन थाम लिया।
‘समाज में जाति और धर्म का जहर फैलाने की लगातार कोशिश’
क्षेत्रीय दलों को लगता है कि जब तक जातिवाद को बढ़ावा नहीं दिया जाएगा वे सत्ता के शिखर पर नहीं पहुंच पाएंगे। लिहाजा समाज में जाति और धर्म का जहर फैलाने की लगातार कोशिश हो रही। कुछ दलों के नेता अब सेना को भी इसी चश्में से देखने लगे हैं। भाजपा-सपा के नेताओं के हालिया बयान इसी का परिणाम है। दोनों दल अपनी सियासत चमकाने के लिए सैन्य अफसरों पर विवादित बयान दे रहे हैं।
वे सेना के नाम पर अपनी सियासी गुणा-भाग को ठीक करने में जुटे हैं। यह स्थिति भारतीय संविधान के समतामूलक समाज की स्थापना के लिए बेहद खतरनाक है। हालांकि इस मामले पर हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अपनाया है लेकिन इसका असर तब तक नहीं पड़ेगा जब तक देश में जाति और धर्म के नाम पर सियासी दल सत्ता पाते रहेंगे। जाहिर है, जनता को इसे गंभीरता से लेना होगा और ऐसी राजनीति करने वालों को हाशिए पर भेजना होगा।