UP News: सिर्फ PCS-IPS पर बर्खास्तगी की गाज, IAS को अभयदान

Sandesh Wahak Digital Desk: भ्रष्टाचार के खिलाफ यूपी में घोटालों के दोषी पीसीएस तो बर्खास्त होते हैं। लेकिन इसी अंदाज में कार्रवाई का पैमाना आईएएस तक पहुंचते ही दम तोड़ देता है। आलम ये है कि देश की शीर्ष एजेंसियों को भी आईएएस के खिलाफ जांच की मंजूरी मिलने में भी पसीने छूट जाते हैं।

आलम ये है कि यूपी सरकार दागी आईपीएस अफसरों को वीआरएस की भी सिफारिश करने से नहीं हिचकती है। कई आईपीएस पूर्व में भ्रष्टाचार और विभिन्न आरोपों पर केंद्र द्वारा बर्खास्त किये जा चुके हैं।

करोड़ों के घोटाले में पीसीएस अफसर निलंबित

हाल ही में शासन ने पीसीएस गणेश प्रसाद साहा को ग्राम समाज की जमीन के पट्टों में बड़ी हेराफेरी करने पर सीधे बर्खास्त करने की कार्रवाई की है। वहीं सौ करोड़ से ज्यादा के घोटाले में दो अन्य पीसीएस भी निलंबित किये गए हैं। लेकिन पावर कार्पोरेशन में 40 हजार कर्मियों की भविष्य निधि हड़पने के खेल में सीबीआई ने जिन तीन आईएएस (संजय अग्रवाल, अपर्णा यू, आलोक कुमार) को जांच के दायरे में लाने के लिए पूछताछ की अनुमति सरकार से मांगी थी।

उनमें से दो के रिटायर होने के बावजूद अनुमति के लिए आज तक तरस रही है। हालांकि सीबीआई इस घोटाले में फिर सक्रिय होने जा रही है। इसी तरह यूपी सरकार ने सत्ता में कदम रखते ही अपर आयुक्त मेरठ रणधीर सिंह दुहन और नोएडा के एसडीएम धनश्याम सिंह को अलग अलग घोटालों में बर्खास्त किया था।

भूमि अधिग्रहण में सौ करोड़ से ज्यादा का घोटाला

रणधीर के ऊपर शामली में शत्रु सम्पत्ति की 27 हेक्टेयर जमीन नीलाम करने और घनश्याम के ऊपर मेरठ गाजियाबाद एक्सप्रेसवे के भूमि अधिग्रहण में सौ करोड़ से ज्यादा के घोटाले का आरोप था। पीसीएस अफसरों को बर्खास्त करने से शासन के कदम भले न हिचकें, लेकिन आईएएस अफसरों की बात आते ही चुप्पी साधने से उन्हें कतई गुरेज नहीं है। भ्रष्ट आईएएस अफसरों की स्क्रीनिंग भी मानो लम्बे समय से बंद है। तकरीबन एक दशक पहले यूपी कैडर के 2025 बैच के आईएएस शिशिर प्रियदर्शी को बर्खास्त केंद्र सरकार ने किया था। ये अफसर लम्बे समय से गायब चल रहा था।

आईएएस अफसरों के ऊपर संगीन आरोपों के बावजूद उनकी बर्खास्तगी मानो टेढ़ी खीर साबित हो रही है। आगरा के डीएम रहे एक दागी आईएएस के ऊपर कई मुकदमें तक दर्ज हैं। भ्रष्टाचार से जुडी कई जांचों के बावजूद वो हमेशा सेफ जोन में बना हुआ है। यूपी सरकार ने पूर्व आईपीएस मणिलाल पाटीदार, अमिताभ ठाकुर, राजेश कृष्ण समेत चार आईपीएस के खिलाफ अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश पूर्व में की थी। जिसके बाद उन्हें केंद्र से बर्खास्तगी मिली। लेकिन यूपी के प्रमुख घोटालों में फंसे एक भी आईएएस के खिलाफ वीआरएस देने की मुहिम नहीं चलाई गयी।

राजीव कुमार की बर्खास्तगी की हुई थी सिफारिश

नोएडा प्लाट आवंटन घोटाले में फंसे पूर्व प्रमुख सचिव नियुक्ति राजीव कुमार के खिलाफ अनिवार्य सेवानिवृत्ति के बहाने योगी सरकार ने डीओपीटी से बर्खास्तगी की सिफारिश की थी। लेकिन वो तकरीबन छह वर्ष निलंबित रहने के बाद आराम से रिटायर हो गए। डीओपीटी की सेहत पर जू तक नहीं रेंगी। करीब डेढ़ वर्ष तक डीओपीटी ने वीआरएस की फाइल पर कुंडली मारकर राजीव को आराम से रिटायर हो जाने दिया।

मुख्य सचिवों को सुध नहीं

मुख्य सचिव की अध्यक्षता में स्क्रीनिंग कमेटी बनाने का नियम है। लेकिन जो भी मुख्य सचिव यूपी की नौकरशाही का मुखिया बनता है। उसे आईएएस अफसरों की स्क्रीनिंग से मानो कोई सरोकार नहीं है। तभी पूर्व मुख्य सचिव राजीव कुमार के बाद 2017 से अभी तक एक भी मुख्य सचिव ने इस ओर कतई ध्यान नहीं दिया। हालांकि बिना पुख्ता दस्तावेज़ों के अनिवार्य सेवानिवृत्ति की सिफारिश करना टेढ़ी खीर होता है। इसका सीधा लाभ कोर्ट में अफसरों को मिलता है।

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