लखनऊ में अंबेडकर की मूर्ति हटाने को लेकर विवाद, अखिलेश यादव ने प्रशासन पर लगाए गंभीर आरोप

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश के लखनऊ में संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर की मूर्ति हटाने के मामले ने सियासी हलकों में हलचल मचा दी है। महिंगवा थाना क्षेत्र के खंतरी गांव में प्रशासन द्वारा डॉ. अंबेडकर की मूर्ति हटाने की कार्रवाई के बाद ग्रामीणों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया। इस विरोध प्रदर्शन के दौरान स्थिति इतनी बिगड़ गई कि पुलिस को बल प्रयोग करना पड़ा, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए।

प्रशासन का कहना है कि खंतरी गांव में बिना अनुमति के सार्वजनिक भूमि पर मूर्ति लगाना अवैध है, और इसे हटाए बिना कोई विकल्प नहीं था। हालांकि, ग्रामीणों का कहना है कि यह मूर्ति उनके लिए आस्था का प्रतीक है और प्रशासन उनकी भावनाओं का अनादर कर रहा है। ग्रामीणों ने प्रशासन के खिलाफ विरोध जताते हुए पुलिस पर पथराव किया, जिससे कई लोग घायल हो गए।

सपा प्रमुख का तीखा हमला

इस मुद्दे को लेकर समाजवादी पार्टी के प्रमुख और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने भी तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “लखनऊ में बाबासाहेब की मूर्ति को हटाने का जो दुस्साहस प्रशासन कर रहा है, उसके पीछे शासन का जो दबाव है, उसे पीडीए समाज अच्छी तरह समझ रहा है। किसी के जातीय वर्चस्व का अहंकार कभी गोरखपुर में मूर्ति-चबूतरा हटाने का काम करवाता है, तो कभी लखनऊ में अपने राजनीतिक प्रभुत्व के दंभ को साबित करने के लिए महापुरुषों की मूर्ति हटाने का कुकृत्य करवाता है। जनाकांक्षा की अवहेलना जनाक्रोश को जन्म देती है। पीडीए कहे आज का, नहीं चाहिए भाजपा!”

अखिलेश यादव का यह बयान प्रशासन पर सीधे हमला है, जिसमें उन्होंने सत्ता पर जातीय और राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने के आरोप लगाए हैं।

सूत्रों के अनुसार, प्रशासन ने खंतरी गांव में स्थित डॉ. अंबेडकर की मूर्ति को अवैध मानते हुए उसे हटाने का आदेश दिया था। मूर्ति के विरोध में ग्रामीणों ने प्रदर्शन किया, जो जल्द ही उग्र हो गया। इस दौरान पुलिस पर पथराव किया गया, जिससे कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। इसके बाद पुलिस ने लाठीचार्ज किया, जिसमें कई लोग चोटिल हो गए।

प्रशासन का कहना है कि यह कदम कानून के तहत उठाया गया है, क्योंकि बिना अनुमति के सार्वजनिक स्थान पर मूर्ति लगाना कानूनी अपराध है। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह मूर्ति उनके लिए श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, और प्रशासन द्वारा इसे हटाए जाने से उनकी भावनाओं को ठेस पहुंची है।

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