सीएम का आदेश बेमानी, गोंडा में चलती है निजी अस्पताल संचालकों की मनमानी!

Sandesh Wahak Digital Desk/A.R.Usmani: गोंडा जिले के निजी अस्पताल संचालक सरकार के आदेश का न सिर्फ मखौल उड़ा रहे हैं, बल्कि सारे नियमों को ताक पर रखकर बेसमेंट को वार्ड के रूप में तब्दील कर मरीजों को भर्ती कर रहे हैं। शासन के सख्त निर्देश के बाद भी इन निजी नर्सिंग होमों के खिलाफ किसी भी तरह की कोई कार्रवाई नहीं की जा रही है। यहां सबसे चौंकाने वाली बात तो यह है कि जिला प्रशासन की नाक के नीचे ही शुभम हॉस्पिटल जिम्मेदार महकमे और अधिकारियों को चैलेंज कर रहा है।

सरकार का हुक्म है कि जिन निजी अस्पतालों के पास फायर एनओसी नहीं है, उन पर सील लगाई जाए और जहां आग से लडऩे के बंदोबस्त न हों, उन सभी नर्सिंग होम्स को बंद कराया जाए।

सूबे में हुए हादसों के बाद भी नहीं टूट रही जिले के जिम्मेदार अधिकारियों की नींद

बगैर मानक पूरे किए अस्पताल चलाने वालों के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने का भी सख्त आदेश है, लेकिन जिले में इन आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है। वैसे, ये सब तब होगा, जब अधिकारियों को कमियां नजर आएंगी। गत माह झांसी मेडिकल कॉलेज में आग लगने से हुई 11 मासूम बच्चों की मौत से भी गहरी नींद में सोए जिले के जिम्मेदारों की नींद नहीं टूट रही है। हालांकि शासन द्वारा निर्देश जारी किए जा चुके हैं कि अफसर निजी अस्पतालों में सुरक्षा के मानक चेक करने निकलें और मानक की अनदेखी करने वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करें। इसके बावजूद जिले का सुस्त सिस्टम गहरी नींद में सोया हुआ है और चेकिंग के नाम पर सिर्फ खानापूर्ति की जा रही है। सच तो यह है कि यहां लापरवाही की भी हद है।

तमाम निजी नर्सिंग होम के बेसमेंट में बने वार्ड

गोण्डा में स्वास्थ्य विभाग के आंकड़ों में जो अस्पताल पंजीकृत हैं, उनकी संख्या सैकड़ों में है, लेकिन कुछ ही लोगों के पास फायर ब्रिगेड की एनओसी है। अधिकांश नर्सिंग होम बिना एनओसी के ही संचालित किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं, जिम्मेदार अधिकारियों की मिलीभगत से तमाम निजी अस्पताल सरकार के सारे मानकों को दरकिनार कर संचालित किए जा रहे हैं, जो आमजन के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं।

आमजन के जीवन से किया जा रहा खिलवाड़

सूत्र बताते हैं कि जिले के अधिकांश निजी अस्पताल सुरक्षा के मानकों को पूरा नहीं कर रहे हैं। हालांकि अग्नि शमन विभाग (फायर ब्रिगेड) द्वारा इन अस्पतालों को कई दफा नोटिसें भी जारी की जा चुकी हैं, लेकिन इसका कोई असर होता नहीं दिखाई दिया। फायर ब्रिगेड विभाग के अधिकारी भी केवल नोटिस-नोटिस खेलने में ही लगे रहते हैं। वह इससे आगे नहीं बढ़ पा रहे हैं। जिले के सैकड़ों निजी अस्पतालों में से करीब दर्जन भर अस्पतालों के पास ही एनओसी होना बताया जाता है। ऐसे में यह बात साफ है कि अस्पतालों के मानकों में भारी गोलमाल है। यहां सरकार के नियम व शर्तों को नहीं माना जा रहा है।

सुरक्षा मानकों को लेकर समय-समय पर अभियान चलाया जाता है। डीएम के निर्देश पर पिछले दिनों जिले भर में अभियान चलाया गया। निजी अस्पतालों द्वारा यदि सुरक्षा मानकों व नियमों की अनदेखी की जाती पाई जाएगी तो उन पर नियमानुसार सख्त कार्रवाई की जाएगी।

-डॉ रश्मि वर्मा, सीएमओ।

शासन का फरमान बेअसर, बेसमेंट में भर्ती किए जा रहे मरीज

हद तो यह है कि जनपद में तमाम अस्पताल बेसमेंट में भी चल रहे हैं। दिल्ली की घटना के बाद अधिकारियों ने चेकिंग की थी। कुछ दिन तो हल्ला मचा, लेकिन बाद में सब शांत हो गए। अम्बेडकर चौराहे पर पेट्रोल पंप के सामने शुभम हॉस्पिटल गोण्डा-लखनऊ हाईवे से बिल्कुल सटा हुआ है। इसी के सामने से जिलाधिकारी की गाड़ी गुजरती है।

इनके साथ ही जब भी कलेक्ट्रेट, विकास भवन अथवा जिला पंचायत सभागार में समीक्षा बैठकें होती हैं, तब सीएमओ भी इसी अस्पताल के सामने से गुजरती हैं लेकिन किसी भी अधिकारी की नजऱ इस पर नहीं पड़ रही है। यह हास्यास्पद भी है और चिंताजनक भी। झांसी की घटना के बाद भी गोण्डा का स्वास्थ्य महकमा और जिला प्रशासन सुस्ती की चादर ओढ़े रहा। ऐसे में निजी अस्पतालों में भर्ती मरीजों व तीमारदारों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही कही जा सकती है।

तंग गलियों में चल रहे नर्सिंग होम

जिले में कई ऐसे नर्सिंग होम हैं, जो तंग गलियों में चल रहे हैं। हादसा होने पर यहां फायर ब्रिगेड की गाड़ी भी नहीं पहुंच सकती है। इससे साफ है कि ये अस्पताल सुरक्षा के मानकों को पूरा नहीं करते, लेकिन फिर भी धड़ल्ले से इनका संचालन हो रहा है। अग्निशमन अधिकारी का कहना है कि इन अस्पतालों की रिपोर्ट सीएमओ को भी दे दी गई है। कई बार नोटिस भी जारी किए गए लेकिन नतीजा शून्य ही रहा। तंग गलियों में चलने वाले अस्पताल बडग़ांव पुलिस चौकी के पास, जय नारायण चौराहा के पास गली में, श्याम मंदिर के करीब गल्ला मंडी के पास, कुंवर टॉकीज के पास व चौक बजार इलाके में हैं। कुछ अस्पताल तो ऐसी गलियों में चल रहे हैं कि वहां अगर एक साथ दो ऑटो निकलने लगें तो टकरा जाएं।

निजी अस्पतालों में प्रशिक्षित स्टॉफ तक नहीं

जिन अस्पतालों के पास आग से लडऩे के संसाधन हैं, वहां प्रशिक्षित स्टॉफ तक नहीं हैं। अग्निशमन यंत्र को कैसे चलाया जाए, यह उन्हें पता ही नहीं है। आग लगने पर सबसे पहले क्या करें, उन्हें इसकी भी जानकारी नहीं है। दरअसल, बड़े संस्थानों में रेत (बालू) भी होनी चाहिए। इससे आसानी के साथ आग पर काबू पाया जा सकता है, लेकिन इसकी भी अनदेखी की जा रही है।

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