रबींद्रनाथ टैगोर की 162वीं जयंती आज, जानिए उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

Sandesh Wahak Digital Desk: भारतीय राष्ट्रगान के रचयिता और संगीत-साहित्य के सम्राट रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को हुआ था, लेकिन रबींद्रनाथ टैगोर का जन्मदिन 9 मई को मनाया जाता है. इस साल उनकी 162वीं जयंती मनाई जा रही है. रबींद्रनाथ टैगोर की उपलब्धियां भी कम नहीं हैं.

टैगोर ने अपने जीवन में 2200 से अधिक पुस्तकें लिखी हैं. उनके जीवन से जुड़ी कुछ ऐसी बातें जो ज्यादातर लोग नहीं जानते हैं, तो चलिए उनके जन्मदिन पर हम आपको बताते हैं उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ अहम और दिलचस्प बातें…

रबींद्रनाथ टैगोर का जन्म

7 मई 1861 को कोलकाता में देबेंद्रनाथ टैगोर और शारदा देवी के घर में रवींद्रनाथ टैगोर का जन्म हुआ. जानकारी के अनुसार बचपन में उन्हें प्यार से रबी बुलाया जाता था. अपने सभी 13 भाई-बहनों में सबसे छोटे रबींद्रनाथ टैगोर को उनके परिवार में साहित्यिक माहौल मिला, जिसके कारण उन्हें साहित्य से बहुत लगाव था.

बता दें कि रबींद्रनाथ टैगोर बैरिस्टर बनना चाहते थे, इस लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने 1878 में इंग्लैंड के ब्रिजस्टोन पब्लिक स्कूल में दाखिला लिया. इसके बाद वे कानून की पढ़ाई के लिए लंदन के कॉलेज में गए लेकिन वहां पढ़ाई पूरी किए बिना ही वे साल 1880 में वापस आ गए.

रबींद्रनाथ टैगोर ने 8 साल की उम्र में पहली बार कविता लिखी थी. वहीं, जब वे 16 साल के हुए तो उन्होंने छद्म नाम ‘भानुसिंह’ के तहत अपना पहला कविता संग्रह जारी किया. वह न केवल भारत ही बल्कि एशिया के भी पहले व्यक्ति थे जिन्हें 1913 में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. आज भी रबींद्रनाथ संगीत बंगाली संस्कृति का अभिन्न अंग माना जाता है.

टैगोर ने लिखे 2 देशों के राष्ट्रगान

रबींद्रनाथ टैगोर एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनकी रचनाओं को दो देशों ने अपना राष्ट्रगान बनाया है, भारत का राष्ट्रगान ‘जन गण मन’ और बांग्लादेश का राष्ट्रगान ‘आमार सोनार बांग्ला’ जो टैगोर की रचनाएं हैं.

टैगोर साहित्य के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित होने वाले पहले गैर-यूरोपीय थे. हालांकि टैगोर ने इस नोबेल पुरस्कार को सीधे तौर पर स्वीकार नहीं किया, बल्कि उनकी जगह एक ब्रिटिश राजदूत ने पुरस्कार लिया. टैगोर को ब्रिटिश सरकार द्वारा ‘नाइट हुड’ यानी ‘सर’ की उपाधि से भी नवाजा था, लेकिन 1919 में जलियांवाला बाग कांड के बाद टैगोर ने इस उपाधि को वापस कर दिया.

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