UP Politics: पीडीए की सियासत रास आ गई अखिलेश को, मायावती की बढ़ी मुश्किलें

2027 के विधानसभा चुनाव से पहले दलितों को पाले में लाने की तैयारी में जुटे सपा प्रमुख

Sandesh Wahak Digital Desk/Chetan Gupta: पिछड़ों, दलितों और अल्पसंख्यकों (पीडीए) को एक कर बीजेपी को केंद्र व उत्तर प्रदेश की सत्ता से उखाड़ फेंकने की कोशिश में जुटे सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की नजर लगातार जनाधार खो रही बसपा के कोर वोट बैंक पर है यानी मायावती के कैडर दलित वोटों को अपनी झोली में डालने के लिए वो हर हथकंडा अपनाने को तैयार है। इधर भाजपा भी इस वोट बैंक पर अपनी नज़रें गढ़ाए है।

सपा पीडीए के फार्मूले के दम पर 2024 में लोकसभा चुनाव में 37 सीटें जीतकर तीसरे सबसे बड़े दल के रूप में उभरकर सामने आई हैं। पीडीए को धार देने व उसे और ज्यादा मजबूत करने में लगे अखिलेश अब कभी बसपा के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे दिग्गजों को एक-एक कर अपनी पार्टी में लाने में जुटे हैं। कुल मिलाकर जिनको हाथी की सवारी नहीं भा रही है, उनको हाथी से उतारकर साइकिल की सवारी कराने का ब्लूप्रिंट तैयार हो गया है, जो बसपा सुप्रीमो के लिए चिंता का सबब है। प्रदेश में दो साल बाद विधानसभा चुनाव है, लेकिन सियासी बिसात अभी से ही बिछने लगी है।

पीडीए फार्मूले को ज्यादा मजबूत करने पर फोकस

2027 चुनाव के लिए सियासी जमीन तैयार कर रहे सपा प्रमुख अखिलेश यादव का फोकस अपने पीडीए फार्मूले को और ज्यादा मजबूत करने पर है। अखिलेश ने अभी हाल में बसपा के पूर्व कद्दावर नेता दद्दू प्रसाद को अपने साथ जोड़ लिया है। दद्दू प्रसाद के अलावा सलाउद्दीन, देवरंजन नागर और जगन्नाथ कुशवाहा को भी सपा की सदस्यता दिलाई है। दद्दू प्रसाद बसपा के संस्थापक कांशीराम की सियासी प्रयोगशाला से निकले एक मंझे हुए नेता हैं। एक समय मायावती की कोर टीम का हिस्सा और बुंदेलखंड में बसपा का दलित चेहरा हुआ करते थे। अखिलेश यादव ने  जिन नेताओं को सपा की सदस्यता दिलाई है, उसमें ओबीसी, दलित और अल्पसंख्यक समुदाय से जुड़े नेता है।

कई राजनीतिक दिग्गजों ने छोड़ी बसपा

बसपा में एक समय नसीमुद्दीन, इंद्रजीत सरोज, दद्दू प्रसाद, लालजी वर्मा, रामअचल राजभर, स्वामी प्रसाद मौर्य, बाबू सिंह कुशवाहा, आरके चौधरी, सुखदेव राजभर जैसे नेताओं की हनक हुआ करती थी। ये सभी मायावती के करीबी माने जाते थे, लेकिन एक-एक कर सभी ने बसपा से नाता तोड़ दिया या फिर बसपा से निकाले जाने के बाद सपा व कांग्रेस अन्य दलों में शामिल हो गए। स्वामी प्रसाद मौर्य ने जरूर सपा छोड़ दी है, लेकिन ज्यादातर नेता अभी भी अखिलेश यादव के साथ बने हुए हैं। दद्दू प्रसाद के बहाने दलित समाज को पार्टी से जोडऩे व बसपा में घुट रहे तमाम जिलों के स्थानीय नेताओं को सपा में शामिल कराने की योजना बन चुकी है।

दलित समाज के महापुरुषों का सम्मान

दलित समाज को जोडऩे के लिए अखिलेश ने अपनी कोर टीम को लगा दिया है। अंबेडकर जयंती पर 8 से 14 अप्रैल तक पूरे प्रदेश में सपा कार्यालयों में स्वाभिमान-स्वमान समारोह का आयोजन किया जा रहा है। सपा संविधान व आरक्षण मुद्दे पर भी दलितों को पार्टी से जोडऩे में जुटी है।

बीजेपी के 80:20 फॉर्मूले की काट 90:10 से

सपा की पीडीए पॉलिटिक्स के चलते ही अखिलेश यादव यूपी में योगी के 80-20 फॉर्मूले के सामने 90:10 के समीकरण का दांव चला है। योगी के 80:20 फॉर्मूले को हिंदू बनाम मुसलमान वोट बैंक से जोड़ा जा रहा है। यूपी में करीब 80 फीसदी हिंदू व 20 फीसदी मुस्लिम है। वहीं अखिलेश के फॉर्मूले को जातीय गणित से जोडक़र देखा जा रहा है।

Swami Prasad Maurya

90 फीसदी को पूरा करने के लिए अखिलेश समाजवादियों के साथ अंबेडकरवादियों को जोडऩे में लगे हैं। सपा पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक के साथ सवर्ण वोटों में सेंधमारी का प्रयास कर रही हैं। हालांकि सर्वणों की नाराजगी से अखिलेश वाकिफ है। उनको मालूम है पूर्व में स्वामी प्रसाद मौर्य ने रामचरितमानस को लेकर और हाल में सपा सांसद रामजी लाल सुमन ने राणा सांगा को लेकर जो विवादित बयानबाजी की है उसको लेकर सवर्णों में सपा के प्रति खासी नाराजगी है।

यूपी में जातियों की गणित

यूपी में 42-43 फीसदी ओबीसी वोटर्स है। प्रदेश की पिछड़ी जातियों में सबसे ज्यादा 19.4 प्रतिशत हिस्सेदारी यादवों की हैं। इसके बाद कुर्मी व पटेल हैं, जिनकी ओबीसी में 7.4 प्रतिशत हिस्सेदारी है। ओबीसी की कुल संख्या में निषाद, मल्लाह और केवट 4.3 प्रतिशत, भर और राजभर 2.4 प्रतिशत, लोध 4.8 प्रतिशत और जाट 3.6 प्रतिशत हैं। एक अनुमान के मुताबिक यहां 17-19 फीसद सवर्ण वोटर हैं जो बीजेपी का कोर वोट बैंक माने जाते हैं।

इनमें ब्राह्मण 10, क्षत्रिय 5, वैश्य 2, भूमिहार 2 फीसदी और अन्य जातियां शामिल हैं। इनके अलावा दलित वोटर्स की संख्या भी 21 फीसदी है। इनमें जाटव 11 फीसदी, पासी 3.5 फीसदी, कोरी 1 फीसदी, धोबी 1 फीसदी, खटिक, धनगर, बाल्मिकी और अन्य 4.5 फीसदी जातियां हैं। यूपी में मुस्लिम मतदाता भी बड़ी संख्या में हैं और कई सीटों पर अहम भूमिका निभाते हैं। यूपी में करीब 19-20 फीसदी मुस्लिम वोटर्स हैं।

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