‘चतुर शिकारी जल्दी फंसता है’, फर्जी केस दर्ज कराने वाले वकील को लखनऊ कोर्ट ने सुनाई 10 साल की सजा

Sandesh Wahak Digital Desk: उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहां एक अधिवक्ता को फर्जी मुकदमा दर्ज कराने के आरोप में 10 साल की सजा सुनाई गई है। कोर्ट ने न सिर्फ उसे दोषी ठहराया, बल्कि उसके खिलाफ सख्त टिप्पणी करते हुए ₹2.5 लाख का जुर्माना भी लगाया है। अदालत ने कहा “चतुर शिकारी ही जल्दी जाल में फंसता है।”
यह मामला विकासनगर थाना क्षेत्र का है, जहां अधिवक्ता लाखन सिंह ने अपने पड़ोसी सुनील दुबे के खिलाफ हत्या का प्रयास, धमकी, गाली-गलौज, तोड़फोड़ और एससी/एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज कराया था। लेकिन जांच में पूरा मामला झूठा और मनगढ़ंत पाया गया।
जमीन विवाद को बनाया जातीय उत्पीड़न का मुद्दा
विशेष लोक अभियोजक अरविंद मिश्रा के अनुसार, लाखन सिंह और सुनील दुबे के बीच जमीन को लेकर पुराना विवाद चल रहा था। सभी दस्तावेजी साक्ष्य सुनील के पक्ष में थे, लेकिन लाखन ने कानूनी लड़ाई हारने के डर से एससी/एसटी एक्ट का दुरुपयोग कर फर्जी केस दर्ज कराया।
बता दें कि 15 फरवरी 2014 को लाखन ने अदालत में इस्तगासा दाखिल कर आरोप लगाया था कि सुनील दुबे ने जानलेवा हमला किया, धमकाया, गाली दी और जातीय टिप्पणी की। इसके आधार पर विकास नगर थाने में मामला दर्ज हुआ। पुलिस जांच में सामने आया कि घटना का कोई प्रमाण मौजूद नहीं है। न कोई हमला हुआ, न धमकी दी गई, और न ही किसी तरह का जातीय उत्पीड़न हुआ। पूरी घटना सिर्फ भूमि विवाद से प्रेरित थी।
विशेष न्यायाधीश विवेकानंद शरण त्रिपाठी की अदालत ने इस गंभीर मामले को देखते हुए वकील को 10 वर्षों की सजा और अलग-अलग धाराओं में दंड अलग-अलग चलने का आदेश दिया। साथ ही कोर्ट ने कहा कि लाखन सिंह जैसे लोग एडवोकेट जैसे सम्मानजनक पेशे का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं।
कोर्ट परिसर में प्रवेश पर भी रोक की सिफारिश
अदालत ने यह भी टिप्पणी की कि लाखन सिंह ने पहले भी अन्य लोगों के खिलाफ फर्जी केस दर्ज कराए हैं। ऐसे व्यक्ति को कोर्ट में प्रवेश की अनुमति देना न्याय की गरिमा के खिलाफ है। कोर्ट ने कहा कि “कानून का रक्षक अगर भक्षक बन जाए, तो न्याय प्रणाली की विश्वसनीयता को गहरी चोट पहुंचती है।” कोर्ट ने लखनऊ के पुलिस कमिश्नर और जिलाधिकारी को निर्देश दिए हैं कि फर्जी एससी/एसटी केस दर्ज कराने पर लाखन सिंह को जो भी सरकारी सहायता या मुआवज़ा दिया गया, उसकी रिकवरी की जाए।
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